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________________ ७१ 268 : १०-२६ ] १०. जातिनिरूपणषविंशतिः 268) मनोभवशरादितः स्मरति कामिनी यां' नरो विचिन्तयति सापरं मवनकातराङ्गो परम्। परोऽपि परभामिनीमिति विभिन्नभावे स्थिती विलोक्य जगतः स्थिति सुधजनास्तपः कुर्वते ॥ २६ ॥ इति जातिनिरूपणपविशतिः ॥१०॥ प्रबलदुःसदा निघाय, यदि अस्तसर्वाशुभं सुखामृतं रसिंतुम् इच्छत, परिग्रहग्रहं धनार्जवं विमुन्नत ॥ २५ ॥ मनोभवशरावितः नरः या कामिनी स्मरति सा मदनकातरामी अपरं विचिन्तयति । परं परोऽपि परभामिनी (विचिन्तयति)। इति विभिन्नभावे स्थिता जगतः स्थिति विलोक्य सुषजनाः तपः फुर्वते ।। २६ ।। ॥ इति जातिनिरूपगविशतिः ॥ १०॥ देनेवाला है ऐसा अपने चित्तमें निर्णय लेकर उससे छुटकारा पाने के लिये कुटिल परिग्रहको ग्रहण करनेकी इच्छा का त्याग करो। समस्त पदार्थोसे ममस्वभाव छोड़ दो॥ २५ ॥ जो पुरुष मनोभव कहिये कामदेवके बाणसे पीड़ित होकर जिस कामिनी-स्त्रीको चाहता है, उसके साथ समागमका निरंतर आर्तध्यान करता है, वह स्त्री उसको नहीं चाहती । वह कामसे पीड़ित होकर किसी दूसरे परपुरुषके समागमको इच्छा करती है। वह परपुरुष भी अन्य किसी दूसरी स्त्रीको इच्छा करता है। इस प्रकार भिन्न-भिन्न इच्छारूप भावोंसे युक्त इस संसारकी स्थितिको देखकर ज्ञानीजन संसारसे विरक्त होकर तपोवनमें जाकर तपोनुष्ठान कर अपनी बास्माकी साधना करते हैं ।। २६ ।। १सयो । २ स परां। ३ स भावेप्सिता, स्थितं । ४ स om. इति, इति जातिनिरूपणम् ।
SR No.090478
Book TitleSubhashit Ratna Sandoha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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