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________________ [ १०. जातिनिरूपणषड्विंशतिः ] 243) बनेकमलसंभये, कृमिकुलैः सदा संकुले विचित्रबहुवेदने बुधविनिन्विते वुःसहे। भ्रमन्नयमनारतं व्यसनसंकटे बेहवान् पुराजितवशो भवे भवति भामिनीगर्भके ॥१॥ 244) शरीरमसुरवावहं विविषदोषव|गृहं सशुक्ररुधिरोदभवं भवभूता भवे भ्रम्पते । प्रगृह्य भवसंततेविवषता निमित्तं विधि सरागमनसा सुखं प्रचुरमिस्छता तस्कृते ॥ २॥ __245) किमस्य सुखमादितो भवति वेहिनो गर्भके किमङ्ग मलभक्षणप्रभृतिषिते शंशवे । किमङ्गजकृतासुखव्यसनपीडित यौवने किमङ्ग गुणमर्दनक्षमजराहते वाईके ॥३॥ अयं देहवान् पुराजितवशः व्यसनसंकट भवे अनारत भ्रमन्, अनेकमलसंभवे, सदा कृमिकुल: संकुले, विचित्रबहुवेदने, बुपविनिन्दिते, दुःसहे भामिनीगर्भके भवति ॥ १॥ भवसंततेः निमित्त विधि विक्षघता, तस्कृते प्रधुरं सुखम् इच्छता, सरागमनसा भवभृता, असुखावह, विविषदोषवटैगृहं, सशुक्ररुधिरोदभवं शरीरं प्रगृह्य भवे भ्राम्यते ॥ २ ॥ अस्य देहिनः गर्भके आदितः किं सुखं भवति ? हे अङ्ग, मकभक्षणप्रभृतिषिते शंशवे कि (सुखं भवति) ? अमजकूतासुखव्यसनपोस्ति यौवने यह शरीरधारी प्राणी अपने पूर्वोपार्जित कर्मोदय वश नाना दुःखोंसे पूर्ण योनियोंमें भ्रमण करता हुमा माताके गर्भ में जन्म लेता है, जो कि नाना प्रकारके रक्त-मांस आदि सप्त धातु मलसे बना है। निरंतर उसमें कृमी-कीटक आदि स जीव उत्पन्न होते हैं । गर्भमें संकुचित रूपसे नाना प्रकारकी भयंकर वेदना सहता है। ज्ञानी सज्जन ऐसे गर्भमें उत्पन्न होनेकी निंदा करते हैं ॥१॥ यह जीव जन्म धारण कर जो शरीर प्राप्त करता है वह यद्यपि इस जीवको सुखावह नहीं है, निरंतर दुःख ही देने वाला है। नाना प्रकारके दोष विष्टामल का घर है, पिताके वीर्य और माताके रजसे उत्पन्न होने वाला है। तो भी यह जीव उस शरोरके प्रेममें बंधा हो उससे अधिकाधिक सुख मिले ऐसी खोटी आशा करता हुआ उस शरीरके लिये अनुराग बुद्धिसे नाना प्रकारके उपाय करता है और जम्म-मरण संततिके कारणभूत इस शरीरको धारण करके संसारमें चिरकाल काल तक घूमता है ।। २ ।। इस देहधारो जीवको शरीरको किसी भी अवस्था सुख नहीं मिलता। देखो ! जब यह गर्भमें आता है तब वहाँ शरीर संकुचित रहनेसे कष्ट होता है। गर्भसे निकलते समय कितने कष्ट होते हैं वे बालकके रुदनसे ज्ञात हो सकते हैं । बालकपनमें वह अंगमल-विष्टान्नाकका मल वगैरह खाता है | अज्ञानसे उसमें घृणा नहीं समझता। यौवन अवस्थामें काम विकार आदि पोड़ाओंसे पीड़ित होता है। वृद्धा अवस्थामें शारीरमें खून कम हो जानेसे शरीर जीणं होता है। हाथ-पांव वातसे पीड़ित होते हैं । इस प्रकार सब अवस्थाओं १ स अनेफमूत्र । २ स संकुलः । ३ स सुशुक्र, सुसुक्र । ४ स भ्राम्यते । ५ स विधं । ६ स गर्मको । ७ स किमगमलभक्षणे । ८ स कृता सुप्त । ९ स किमङ्गगुण ।
SR No.090478
Book TitleSubhashit Ratna Sandoha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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