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________________ सुभाषितसंदोहः [ 242 : ९-३३ 241) निरस्तभूषोऽपि यथा विभाति पवित्रचारित्रविभूषितास्मा । अनेकभूषाभिरलंकृतोऽपि विमुक्तवृत्तो न तथा मनुष्यः ॥ ३२ ॥ 242) सद्दर्शनशानतपोद मायापचारित्रभाजः सफलाः समस्ताः । व्यश्चरित्रेण विना भवन्ति शारवह सन्तश्चारिते यतन्ते ॥ ३३ ॥ इति चारित्रनिरूपणत्रयस्त्रिशत् ॥९॥ वरम् । अङ्गभाजः असंभवः वा वरम् । चारुचरित्रमुक्त जीवितं न ॥ ३१ ॥ यथा निरस्तभूषः अपि पवित्रचारित्रविभूषितारमा विभाति तथा विमुक्तवृत्तः मनुष्यः अनेकभूषामिः अलंकृतः अपि न (विभाति) ॥ ३२ ॥ सद्दर्शनज्ञानतपोदमायाः पारित्रभाजः समस्ताः सफलाः । चरित्रेण विना पर्याः भवन्ति । (इति) मात्वा सन्तः इह परिते यतन्ते ॥ ३३ ॥ ॥ इति चारित्रनिरूपणत्रयस्त्रिशत् ॥ ९॥ लेकर प्रसूतिकालमें ही मर जाना अच्छा है । अथवा उस शरीरधारी जीवका उत्पन्न न होना ही अच्छा है। परंतु चारित्र रहित जीवन जीना निरर्थक है ।। ३१ । जिसने पवित्र चारित्ररूपी अलंकार भूषणसे अपना आत्मा विभूषित किया है वह संत पुरुष बाह्य भूषण-अलंकार-वस्त्र आदि परिग्रह न होनेपर भी जिस अपूर्व शोभाको प्राप्त करता है, उस शोमाको अनेक मूषण-अलंकार-महीनवस्त्र आदि धारण करने वाला किंतु चरित्रहीन पुरुष कदापि प्राप्त नहीं कर सकता ॥ ३२ ॥ जो संतपुरुष चारित्रको धारण करते हैं उनका सम्यग्दर्शन सम्यशान-तप-दया-आदि सब गुण सार्थक होते हैं । चारित्रके बिना वे सब व्यध-निरर्षक है। कार्यकारी नहीं है। इष्ट सिद्धिको देनेवाले नहीं हैं । ऐमा जानकर संतपुरुष चारित्रकी आराधनामें निरंतर प्रयत्न करते हैं ।। ३३ ॥ १ स नि for वि, विमुक्त न । २ स °दयाः, धाः।
SR No.090478
Book TitleSubhashit Ratna Sandoha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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