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________________ ३६ सुभाषितसंदोहः 126) दुःखानां या निधानं भवनमविनयस्यार्गला स्वर्ग पुर्याः श्वभ्रावासस्यं वर्त्म प्रकृतिरयशसः साहसानां निवासः । धर्मारामस्य शत्री गुणकमलहिमं मूलमेनोद्वैमस्व . मायावल्लीर्धरित्री कथमिह वनिता सेव्यते सा विदग्धैः ॥ २४ ॥ 127) श्रोणीसशमैपः कृमिभिरतिशयातुधैस्तुद्यमाना यत्पीडातो ऽतिदीना विदधति चलनं कोचनानां रमण्यः । तन्मन्यन्ते ऽतिमोहापहृतमनसः सद्विलासं मनुष्या इत्येतत्तथ्यमुचैरमितगतियतिप्रोक्तमाराधनातः ॥ २५ ॥ इति ली [गुण] दोष विचारपश्चविंशतिः ॥ ६ ॥ [ 120 : ६-२४ या दुःखानां निधानम्, अविनयस्य भवनं, स्वर्गपुर्या: मंगला, श्रभ्रावासस्य वर्त्म, अयशसः प्रकृतिः, साहसानां निवासः, धर्मारामस्य शस्त्री, गुणकमलहिमम्, एनोमस्य मूलं, मायावल्लीधरित्री सा वनिता इह विदग्धैः कथमिव सेव्यते ॥ २४ ॥ श्रोणीस पप्रपन्नः अतिशयास्तुदैः कुमिभिः तुद्यमानाः रमण्यः सत्पीडातः अतिदीनाः सत्यः लोचनानां चलनं विदधति, अतिमहात् उपहृतमनसः मनुष्याः तत् सद्विलासं मन्यन्ते । इत्येतत् उच्चैः तथ्यम् आराधनातः अमितगतियतिप्रोक्तम् ॥२५॥ || इति स्त्री (गुण) दोषविचारपञ्चविंशतिः || ६ || है, जिन्य कार्यमें प्रवृत्त होती है, कुत्तीके समान दानमें स्नेह रखती है, इधर उधर घूमने-फिरनेमें आनन्दित रहती है, तथा जो चापलूसी ( खुशामद) करनेमें चतुर होती है; ऐसी उस खीका संसारस्वरूपके जानकार साधुजन दूरसे ही परित्याग करें ॥ २३ ॥ जो स्त्रो दुःखोंका भण्डार है, अविनयका घर है, स्वर्गरूप पुरीकी प्राप्ति अर्गला (बेंडा ) के समान बाधक है, नरकनिवासका मार्ग (कारण) है, अपयशको उत्पन्न करनेवाली है, साइसोंका निवास है - निन्य कार्य करनेका साहस करती है, धर्मरूप उद्यानको नष्ट करनेमें शस्त्रका काम करनेवाली है, गुणोंरूप कमलोंको सुखानेके लिये तुषार के समान है, पापरूप वृक्षको स्थिर रखनेके लिये जड़के समान है, तथा मायारूप बेलिको उत्पन्न करनेके लिये पृथिवीके समान है; उस स्त्रीका सेवन यहां चतुर पुरुष कैसे करते हैं ! अर्थात् विद्वान् मनुष्योंको स्त्रीके ऊर्युक्त स्वभावको जानकर उसका परित्याग करना चाहिये ॥ २४ ॥ स्त्रियोंके नेत्रोंमें जो चंचलता होती है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि उनके योनि स्थानमें जो पीड़ाजनक कीड़े होते हैं उनसे पीड़ित हो करके ही मानो वे चंचल नेत्रोंसे देखा करती हैं। परन्तु उनके नेत्रोंकी इस चंचलताको अविवेकी मनुष्य अतिशय मोहके वशीभूत होकर उत्तम विलास समझते हैं। इस अतिशय सत्यको अमित गति मुनिने यहां आराधना ( भगवती आराधना ) से कहा है ॥ २५ ॥ इस प्रकार पच्चीस श्लोकोंमें बीके गुण-दोषोंका विचार समाप्त हुआ ।। ६ ।। १ सोस । २ सरपञ्चः । ३ स मूलमेनु । ४ सी धरित्री | ५ स श्रोणी । ६ स प्राक्तभावनात् । ७ सom इति, इति स्त्रीदोष विचारविदस समासः इति स्त्रीगुणदोषविचारः ।
SR No.090478
Book TitleSubhashit Ratna Sandoha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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