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________________ 710 : २८-२१ ] २८. धर्मनिरूपणद्वाविंशतिः 700) हरति जननदुःखं मुक्तिसौख्यं विधत्ते रचयति शुभबुद्धि पापबुद्धि धुनोते । अवति सकलजन्तून् कर्मशत्रून्निहन्ति प्रशमयति मनो' यस्तं बुधा धर्ममाहुः ॥ १९ ॥ 709) विषयरतिषिमुक्तिर्यत्र वातानुरक्तिः शमयमदम सक्तिर्मन्मथारातिभक्तिः । जननमरणभीतिद्वेषरागावतिभजत तमिह धर्म कर्मनिमूलनाय ॥२०॥ 710) गुणितनुमति सुष्टि मित्रता शत्रुवर्गे गुरुचरणयिनीति तस्वमार्गप्रणोतिम् । जिनपति पदभक्ति 'बूषणानां तु मुक्ति विदति सति अन्तो धर्ममुत्कृष्टमाहुः ॥२१॥ विध्वंसदक्षं कषितनिखिलदोषम् इति दशविधम् एनं धर्म बेहभाजां भूषणं बर्णयन्त ॥ १८ ॥ यः जननदुःख हरति, मुक्तिसौख्यं विधत्ते, शुभद्धि रचयति, पापबुद्धि घुनीते, सकलजन्तून् भवति, कर्मशवून निहन्ति, मनः प्रशमयति, तं बुधाः धर्मम् आतुः ।। १९ ॥ यत्र विषयरतिविमुक्तिः, दानानुरक्तिः, शमयमदमसक्तिः, मन्मधारातिभक्तिः , जननमरणभीतिः, देषरागावधूतिः, तं धर्मम् इह कर्मनिर्मूलनास भगत ॥ २० ॥ जन्तो गुणितनुमति तुष्टि, शत्रुवर्ग मित्रता, गुरुवरणविनोति, तस्वमार्गप्रणीति, जिनपतिपदभक्ति तु दूषणानां मुक्ति विदधति सति जन्ती धर्मम् उत्कृष्टम् आहुः ॥ २१ ॥ य: शिवपव देव उपर्युक्त प्रकारसे दस प्रकारका बतलाते हैं ॥ १८ ॥ जो जन्म-मरणरूप संसारके दुखको नष्ट करता है, मुक्तिके सुखको करता है, उत्तम बुद्धिको उत्पन्न करता है, पाप बुद्धिको नष्ट करता है, समस्त प्राणियोंको रक्षा करता है, कर्मरूप शत्रुओंको नष्ट करता है, तथा मनको शान्त करता है। उसे पण्डित जन धर्म कहते है ॥ १९ ॥ जिस धर्मके होनेपर यहां विषयोंसे विरक्ति होती है, दानमें अनुराग होता है; शम, यम और दममें आसक्ति होती है; कामरूप शशुका नाश होता है. जन्म और मरणसे भय उत्पन्न होता है, तथा राग और द्वेषका विनाश होता है; उस धर्मका कर्मनाशके लिये आराधन करें ॥२०॥ जो प्राणो गुणी जनको देखकर सन्तुष्ट होता है. शत्रु समूहमें मित्रताका भाव रखता है, गुरुके चरणोंमें नत होता है अथवा गुरु और चारित्रकी विनय करता है, तत्त्वमार्गका प्रणयन करता है-वस्तुस्वरूपका यथार्थ उपदेश करता है, जिनेन्द्रके चरणोंकी भक्ति करता है तथा दोषोंको नष्ट करता है; उसके उत्कृष्ट धर्म होता है, ऐसा गणधरादि बतलाते हैं॥ २१ ॥ जो मनुष्य मनमें मोक्ष सुखके कारणभूत तथा दोघं संसाररूप समुद्रसे पार होनेके लिये पुलस्वरूप सम्यग्ज्ञान, १ स मनार्यस्तं । २ स शक्ति', भक्तिः । ३ स भजति । ४ स गुणिनुत्ति वृष्टि । ५ स विनीतं । ६ स जिनपदपदभुक्ति । ७ स भूषणामंत्र मु । सु. सं. २५
SR No.090478
Book TitleSubhashit Ratna Sandoha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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