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अमितगतिने भी १२ वॅ परिच्छेद में पूजा विधिका और १५ वें ध्यानका वर्णन विस्तारसे किया है। कहींकहीं तो विषयके साथ शब्द साम्य भी है यथा
देवतातिथिपित्रर्थं
मन्त्रीषविभयाय वा 1
न हिस्यात् प्राणिनः सर्वानहिंसा नाम तद्व्रतम् ॥३२०|| – उपा० देवतातिथि मन्त्रीषध पित्रादिनिमित्ततोऽपि सम्पन्ना ।
हिंसा धत्तं नरके किं पुनरिह नान्यथा विहिता ॥ श्र० ६-२९
अतः अमितगतिके सन्मुख उपासकाध्ययन अवश्य रहा है ऐसा प्रतीत होता है ।
३. अतिगांत और माशाघर — अमितगतिके श्रावकाचार आदिने आशाघरके धर्मामृत ग्रन्थके अनगार और सागार दोनों भागोंको अत्यधिक प्रभावित किया है। दोनोंमें श्रावकाचार और पंचसंग्रहके उद्धरणोंकी बहुतायत है तथा आशाधरने स्वयं उनका नामोल्लेख भी किया है यथा - अनगारधर्मामृतकी टीका ( पृ० ६०५ ) में लिखा है-
एतदेव चामितगतिरप्यन्वाख्यात्
कथिता द्वादशावर्ता वपुवचन चेतसाम् ।
स्तव सामायिकाद्यन्तपरावर्तनलक्षणाः ॥ - श्रा० ८१६५
४. अमितगति और पद्मनन्वि आचार्य पद्यनन्दीकी पचविंशतिकाके अनेक पद्य अमितगत्तिसे प्रभावित है, पञ्चविंशतिकाका एक पद्य इस प्रकार है
मनोवचोऽङ्गः कृतमङ्गपीडनं प्रमोदितं कारित यत्र तन्मया । प्रमादतो दर्पत एतदाश्रयं तदस्तु मिथ्या जिन दुष्कृतं मम ।।
अमितगतिकी भावना द्वात्रिंशतिकाके निम्न पद्यांश इस प्रकार है—
'एकेन्द्रियाद्या यदि देव देहिनः प्रमादतः संचरता इतस्ततः '
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मनो वचःकायकषायनिर्मितम् ।
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तदस्तु मिथ्या मम दुष्कृतं प्रभो ।
अन्य भी अनेक समानताएँ है ।
५. अमितगति और प्रभाचन्द्र - आचार्य प्रभाचन्द्रने अपना प्रमेय कमल मार्तण्ड मुंजके उत्तराधिकारो राजा भोजके राज्यकालमें बनाया है। उन्होंने पूज्यपादकी तत्त्वार्थवृत्तिके विषम पदोंपर भी एक टिप्पण लिखा है जो भारतीय ज्ञानपीठसे प्रकाशित सर्वार्थसिद्धिके द्वित्तीय संस्करणके साथ प्रकाशित हो चुका है। उसके प्रारम्भमें अमितगतिके पंचसंग्रहका निम्न पद्य उद्धृत है
वर्ग: शक्तिसमूहोऽणोरणूनां वर्गणानां समूहस्तु स्पर्धक
वर्गणोदिता । स्पर्धेका पहैः ॥
६. अमितगति और हेमचन्द्र आचार्य हेमचन्द्रका स्वर्गवास सम्वत् १२२९ में हुआ था। उन्होंने कुमारपाल के अनुरोधसे योगशास्त्र रचा था ! इसमें जिस प्रकार शुभचन्द्रके ज्ञानार्णवका अत्यधिक अनुकरण है उस प्रकार अमितगतिका अनुकरण तो नहीं है। फिर भी उनके सु० ० सं० तथा श्रावकाचारका प्रभाव