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सुस्पष्ट है। श्रावकाचारके अन्तिम परिच्छेदमें अमिगतिने ध्यानोंका वर्णन विस्तारसे किया है। योगशास्त्रमें भी श्रावकाचारके साथ ध्यानका वर्णन है। उदाहरणके लिये एक श्लोक देना पर्याप्त होगा।
ध्यानं विधिसता जेयं ध्याता ध्येयं विधिः फलम् ।
विधेयानि प्रसिद्धयन्ति सामग्रीतो विना नहि ॥ (श्रा० १५/३३) श्रावकाचारका यह श्लोक योगशास्त्रमें इस रूपमें पाया जाता है
ध्यानं विधित्सता ज्ञेयं ध्याता ध्येयं तथा फलम् ।
सिद्धयन्ति न हि सामग्री विना कार्याणि कहिचित् ।। (७–१) __इस तरह आचार्य अमितगतिकी कृतियोंसे उत्तरकालीन कृतियां प्रभावित हैं । अतः आचार्य अमितगति अपने समयके एक विशिष्ट ग्रन्थकार थे। और उन्होंने अपने वैदुष्यसे जिनशासनका तथा संस्कृत वाङ्मयका मान बढ़ाया था तथा सुरभारतीके साहित्य भण्डारको समृद्ध किया था।
कैलाशचन्द्र शास्त्री