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आदान-प्रदान
विभिन्न आचार्योकी विभिन्न रचनाओं में आदान-प्रदान होना स्वाभाविक है। जहाँ रचनाएं पूर्व ग्रन्थकारोंसे प्रभावित होती हैं वहाँ उत्तरकालीन साहित्यको प्रभावित भी करती हैं। जो कृति ऐसी क्षमता नहीं रखतो वह अपने समयकी प्रतिनिधि रचना होनेका दावा नहीं कर सकती । आचार्य अमितगतिका श्रावकाचार एक ऐसी कृति हैं कि वह जहाँ पूर्व कृतियोंसे प्रभावित हैं वहां उसने उत्तरकालीन कृतियोंको प्रभावित भी किया है।
१. अमितगति और अमृतचन्द्र प्रभावित करनेको दृष्टिसे विशेष उल्लेखनीय है आचार्य अमृतचन्द्रका पुरुषार्थसिद्धयुपाय । उसने अमितगप्तिके श्रावकाचारको शब्दश: भो प्रभावित किया है।
. अमृतचन्द्रने मद्यको बहुतसे जीवोंकी योनि बतलाया है और लिखा है कि मद्यपानसे उनकी हिंसा होती है। यही अमितगतिने भी कहा है। यथा---
रसजानां च बहूनां जीवानां योनिरिष्यते मद्यम् । मद्यं भजतां तेषां हिंसा संजायतेऽवश्यम् ॥३३॥ -पु० सि०
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ये भवन्ति विविधाः शरीरिणस्तत्र सूक्ष्मवपुषो रसङ्गिकाः ।
तेऽखिला झटिति यान्ति पञ्चतां निन्दितस्य सरकस्य पानतः ।।६] श्रा० शराबके लिये अमृतचन्द्रने भी सरक शब्दका प्रयोग (श्लोक ६४) किया है। अन्य श्रावकाचारों में इसका प्रयोग हमारे दृष्टिगोचर नहीं हुआ। .
२. अमृतचन्द्रने कहा है (पु० सि०७४) कि पाँच उदुम्बर तीन मकारका त्याग करनेपर हो मनुष्य जिनधर्म देशनाका अधिकारी होता है । अमितगतिने भी (५-७३) ऐसा ही कहा है।
३. अमृतचन्द्रने हिंसक, दुःखो और सुखीको मारनेका निषेध जिन शब्दों में किया है अमितगतिने भी वैसा ही किया है।
देखें--पु०सि० ८३ श्लोक तथा श्रावकाचार ६१३३ श्लोक ! पुसि० ८५ श्लोक तथा अमि० श्रावकाचार ६.३९ । पु० सिं०८६ श्लोक, श्रा० ६४० श्लोक।
४. अमृतचन्द्रने अन्त वचन और उसके भेदोंका जैसा कथन किया है अमितगतिने भी वैसा ही किया हैं। देखें...पु. सि० ९२-९८ श्लोक तथा श्रा० ६४९-५२ ।
५. व्रतोंके अतीचार सम्बन्धी कई श्लोकोंमें शाब्दिक परिवर्तनमात्र है ।
२. अमितमति और सोमदेव-अमृतचन्द्रके पुरुषार्थ सिद्धथुपायके पश्चात् ही सोमदेवने अपने यशस्तिलकचम्पूके अन्तमें उपासकाध्ययनके नामसे श्रावकाचारको रचना की थी। अमितगतिके श्रावकाचारएर उसका भी प्रभाव परिलक्षित होता है।
उपासकाध्ययनके प्रारम्भमें अन्यदर्शनोंकी आलोचना है। अमि० के श्रावकाचारके तृतीय परिच्छेदमें भी सब दर्शनोंकी विस्तारसे आलोचना है। उपासकाध्ययनके ४३वें कल्पमें भी दाता दान आदिका विस्तारसे वर्णन है, श्रावकाचारके नवम आदि परिच्छेदोंमें भी दानका वर्णन बिस्तारसे किन्तु प्रायः उसी रूपमें है। उपासकाध्ययनके चतुर्थकल्पमें संक्रान्तिमें दान, गोपूजा आदिका निषेध किया है, श्रावकाचारमें भी दानके प्रकरणमें इस प्रकारके दानोंका निषेध किया है। उपासकाध्ययनमें पूजा विधि और ध्यानका वर्णन है