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________________ ६० ......... . सिद्धान्तसारादिसंग्रहेवयतवसंजममूलगुण मूढह मोक्ख णिवुत्तु । जाम ण जाणइ इक्क परु सुद्धउभावपवितु ॥२९॥ व्रततपःसंयममूलगुणैः मूमोक्षो निरुक्तः । ? यावन्न जानाति एक पर शुद्धस्वभावपवित्रं ।। जो णिम्मल अप्पा मुणइ वयसंजमुसंजु । तउ लहु पावह सिद्ध :सुङ इउ जिणणाहह वुत्तु ॥३०॥ यो निर्मलं आत्मानं मनुते व्रतसंयमसंयुक्तम् । स लघु प्राप्नोति सिद्धसुख इति जिनमाथैरुक्तम् ।। वयतवसंजमुसीलु जिय ए सव्वे अकइच्छु । जाम ण जाणइ इक्क परु मुद्धउभावपवितु ॥ ३१ ॥ व्रततपःसंयमशीलानि जीव ! एतानि सर्वाणि व्यर्थानि । यावन्न जानाति एक परं शुद्धस्वभावपवित्रम् ॥ पुर्णिण पावइ सग्ग जिय पावइ गरयाणवासु । वे छंडिवि अप्पा मुणइ तउ लब्भइ सिवयासु ॥३२॥ पुण्येन प्राप्नोति स्वर्ग जीव: पापेन नरकनिवासम् । द्वयं त्यक्त्वा आरमानं मनुते तेन लम्यत शिववासः ॥ वउतउसंजमुसील जिया इय सव्वद ववहारु । मोक्खह कारण एक मुणी जो तइलोयहु सारु ॥ ३३ ॥ व्रत्ततपःसंयमशीलानि जीव ! एतानि सर्वाणि व्यवहारेण । मोक्षस्य कारणं एक मन्यस्व यः त्रिलोकस्य सारः॥ अप्या अप्पड़ जो मुणइ जो परभाव चएइ । सो पापड़ सिवपुरगमणु जिणवर एउ भणेह ।।३४॥
SR No.090474
Book TitleSiddhantasaradisangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherM D Granthamala Samiti
Publication Year1979
Total Pages349
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size5 MB
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