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________________ द्वितीय अधिकार [ ४३ भागः पटलसंख्यानः भूमीना पटलेषु च । पृथग् विभक्त उत्सेधः क्रमाद् वृद्धियुतो मतः ।।७२।। अर्थी-धर्मा नामक प्रथम पृथ्वी के अन्तिम पटल में स्थित नारकियों के शरीर का उत्कृष्ट नत्सेध ७ धनुष, ३ हाथ और छह अगुल है ।।७०।। शेष छह नरकों के अन्तिम परलों में स्थित नारकियों के शरीर का उत्कृष्ट उत्सेध इससे दूना दूना होता गया है। प्रथम नरक के प्रथम पटल का जघन्य उत्सेध तीन हाथ प्रमाण है ॥७१।। वृद्धि के प्रमाण को पटल संख्या से विभाजित करने पर जो प्रति पटल वृद्धि का प्रमाण ग्रावे, उसको जोड़ देने से प्रत्येक पटल में शरीर का उत्सेध प्राप्त होता है ॥७२॥ विशेपार्थ:-प्रथम नरक के प्रथम पटल में शारीर का उत्सेध ३ हाथ है तथा अन्तिम पटल में उत्सेध ७ धनुष, ३ हाथ ६ अंगुल है 1 ७ ध. ३ हाथ ६ अंगुल में से ३ हाथ घटा देने पर ७ धनुष ६ अंगुल शेष रहे । यह वृद्धि १२ पटलों में हुई है, अत: सात धनुष ६ अंगुल को १२ से विभाजित करने पर दो हाथ , अंगुल प्राप्त होते हैं । यह प्रथम नरक के प्रत्येक पटल में वृद्धि का प्रमाण है । दूसरे नरक के अन्तिम पटल में शरीर उत्सेध ७ ध. ३ हाथ ६ अं का दूना है। अर्थात् ७ घ. ३ हाथ ६ अं० की वृद्धि हुई। पटल संख्या ११ है, अतः ७५० ३ हाथ ६ अं को ११ से विभक्त करने पर २ हाथ २०॥ अंगुल प्राप्त होते हैं। यही दूसरे नरक में प्रति पटल वृद्धि का प्रमाण है । इसी प्रकार तीसरे नरक के अन्तिम पटल में शरीर उत्सेध १५ ध. २ हा. १२ अं. का दुगना है; अर्थात् १५ ध. २ हा. १२ अं० की वृद्धि है । पटल संख्या ६ है, अतः १५ ध. २ हा. १२ अं. को 6 से भाजित करने पर एक ध. २ हा. २२ अं. प्राप्त होता है। यहीं तीसरे नरक के प्रत्येक पटल में शरीर उत्सेधकी वृद्धि का प्रमाण है । इसी प्रकार प्रागे भी जानना चाहिये। अथ विस्तरेण सर्वनरक प्रतरेणु नारकाणां देहोत्सेधः पृथक् पृथक् निगद्यते ... घाया. प्रथमे पटले नारकाणां कायोत्सेघस्त्रयो हस्ताः ततः क्रमाद् द्विहस्तसार्धाष्टांगुलवद्वया । द्वितीये च धनुरेक एको हस्तः सार्धाष्टांगुलाः । तृतीये एकं धनुः हस्तास्त्रय अंगुलाः सप्तदश । चतुर्थे द्वे धनुशो द्वौ करो सार्धागुलः । पञ्चमे धनुषि त्रीणि गुलादश । षष्ठे त्रीणि धषि द्वौ करौ साष्टिा दशांगुलाः सप्तमे चत्वारि चापानि एको हस्तः त्रयोंऽगुलाः । अष्टमे चत्वारि धनुषि त्रयो हस्ताः सार्धे का दशांगुला: 1 नवमे पञ्च दडा एको हस्तः विंशतिरंगुलाः । दशमे षट् चापानिसाधंचत्वारोंऽगुलाः । एकादशे षड्धनुषि द्वौ करो त्रयोदशांगुलाः । द्वादशे सप्त धषि साकविंशति रंगुलाः । त्रयोदशे पटले नारकारणां देहोत्सेधः सप्त चापानि यो हस्ताः षडंगुलाश्च | बंशायां आदिमे पटले नारकशरीरोच्छ्रितिः अष्टौदण्डाः द्वौ करौ द्वौ अंगुली; अमुलैकादश भागानां द्वौ भागौ। ततो द्विकरविशत्यंगुलै रंगुर्लकादश भागानां द्विभागाभ्यां क्रमबुद्धया ॥ द्वितीये नव चापानि द्वाविंशत्यं
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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