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________________ २४ ] सिद्धान्तसार दीपक प्रथम पृथिवी के तीन भागों की मोटाई तीन श्लोकों द्वारा कहते हैं:-- रत्नप्रभात्रिपृथिवीनामिवं स्थौल्यं त्रिषा मतम् । योजनानि खरांशस्य स्युः सहस्राणि षोडश ॥१५॥ योजनानां सहस्राणि ह्यशोसिश्चतुरत्तरा । स्थूलत्वं पङ्कभागस्य तृतीयांशस्य निश्चितम् ।।१६।। प्रशीतिसहस्त्राणि त्रिभूमीना पिण्डितानि च । लक्षाशीतिसहस्राणि सर्वाणि योजनान्यपि ।।१७।। अर्थ:--इस (कहे जाने वाले) रत्नप्रभा पृथिवी के तीनों भेदों का बाहुल्य भी तीन प्रकार का माना गया है। यथा-प्रथम खरभाग को मोटाई १६००० योजन, द्वितीय पङ्क भागकी मोटाई ८४००० योजन और तृतीय प्रबहुल भाग की मोटाई ८०००० योजन की है । इन तोनों पृथ्वियों के बाहुल्य को ।। जोड़ने से ( १६००० + ८४००० + ८०००० )= १५०००० एक लाख अस्सी हजार योजन प्राप्त होते हैं । अतः रत्नप्रभा पृथिवी की मोटाई १८०००० मानी गई है ।।१५-१७॥ अब शेष छह पृथिवियों का पिश चार इलोलों द्वारा निता जाता: शेषषट् श्वनभूमीना बाहुल्यं कथ्यतेऽधुना। स्यु त्रिशत्सहस्राणि स्थलत्वं शर्कराक्षिते ॥१॥ अष्टाविंशतिमानानि सहस्रयोजनानि च । बाहुल्यं वालुका पृथ्व्याः सन्ति पङ्कप्रभावनेः ।।१९।। योजनानां चतुविशति सहस्राणि शाश्वतम् । स्थौल्यं घूमक्षितविंशति सहस्राणि सम्मतम् ॥२०॥ तमःप्रभावनेः स्थौल्यं सहस्राणि च षोडश । योजनाष्टसहस्राणि महातमः प्रभाक्षितेः ॥२१॥ अर्थः- अब अवशेष छह नरक पृथिवियों का बाहुल्य ( मोटाई ) कहते हैं । शर्करा पृथिवी की मोटाई ३२००० योजन, वालुका प्रभा पृथिवी की २८००० योजन, पङ्कप्रभा की २४००० योजन, धूमप्रभा पृथिवी की २०००० योजन, तमः प्रभा पृथिवी को १६००० योजन और महातमः पृथिवी को मोटाई ८००० योजन है ॥१५-२११॥ दो श्लोकों द्वारा उन सातों पृध्वियों में स्थित पटलों के स्थान का निरूपण करते हैं:-- धर्मादिषड्धराणां प्रत्येक मूर्खेऽप्यधस्तले ॥ सहस्रयोजनान्मुक्त्वा भवेयुः पटलानि च ।२२।।
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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