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________________ वितीय अधिकार [ २५ पटलं मध्यभागेऽस्ति महातमः प्रभाक्षिते । इवानी सप्तभूमोना विलसंख्योच्यते क्रमात् ॥२३॥ अर्थः-प्रथम पृथिवी के अम्बहुल भाग में और वंशा प्रादि शेष पांच अर्थात् घर्मा आदि छह पृथ्विनों में ऊपर नीचे एक एक हजार योजन को मोटाई छोड़ कर पटलों की स्थिति है और सातची महातमः प्रभा पृथिवी के मध्य भाग में एक ही पटल है। अब सातों पृथ्वियों के बिलों की संख्या क्रम से कहते हैं ।।२२-२३॥ प्रथमादि पश्वियों में बिलों का निरूपण: पादिमे नरके त्रिशल्लक्षाणि स्युबिलानि च । पञ्चविंशतिलक्षाणि द्वितीये दुष्कराण्यपि ॥२४॥ तृतीये नरके पञ्चदशलक्ष बिलानि च । चतुर्थे दशलक्षाणि लक्षत्रयाणि पञ्चमे ।।२५॥ अष्ठे जिलानि होलेक लशासितानि च । सप्तमे नरके सन्ति बिलानि पञ्च केवलम् ॥२६॥ पिण्डीकृतानि सर्वाणि बिलानि सप्तभूमिछु । लक्षाश्चतुरशीतिः स्युविश्वदुःखाकराण्यपि ॥२७॥ अर्थ:-प्रथम नरक में ३०००००० ( तीस लाख ) बिल हैं। दूसरे नरक में २५००००० (पच्चीस लाख ), तीसरे में १५००००० (पन्द्रह लाख ), चौथे में १०००००० ( दश लाख ), पांचवें में ३००००० (तीन लाख ), छठवें में पांच कम एक लाख ( REEE५ ) और सातवें नरक में मात्र ५ ( पांच ) बिल हैं । सम्पूर्ण दुःखों के आकार ( खामि ) स्वरूप इन सातों नरकों के सम्पूर्ण विलों को जोड़ देने से योगफल (३० लाख+ २५ लाख + १५ लाख +१० लाख + ३ लाख + REET५+५ )-८४००००० ( चौरासी लाख ) प्रमाण होता है । अर्थात् सातों नरकों में ८४ लाख बिल हैं ॥२४-२७॥ अब ग्यारह श्लोकों द्वारा सातों नरक पटलों की संख्या एवं उनके नामों का दिग्दर्शन कराते हैं: आदिमे नरके सन्ति प्रतराणि त्रयोदश । एकादश द्वितीये तृतीये नव चतुर्थ के ॥२८॥ सप्ताथ पञ्चमे पञ्च षष्ठे त्रीणि च सप्तमे । एकमेकोन पञ्चाशत्सर्वाणि प्रतराणि च ॥२६॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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