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________________ षोडशोऽधिकारा प्रमाणं वहिना पसभास्माइगुलर नेकपः। चतुर्विशाइ गुलरेको हस्तो जायेत जन्मिनाम् ॥६६॥ अर्थ-चारों गतियों में उत्पन्न होने वाले जीवों के शरीर का उत्सेष उत्सेधांगुल के द्वारा किया जाता है, ऐसा विद्वानों ने कहा है ॥६६।। द्वीप, समुद्र, क्षेत्र, देश, नदी, द्रह आदि, कुलाचल और प्रकृत्रिम जिन चैत्यालयों आदि का उत्सेध, पायाम एवं व्यास प्रादि प्रमाणांगुल से किया जाता है, ऐसा गणधर देवों के द्वारा कहा गया है । ध्वज, छत्र, रथ, प्राणियों के प्रावास, घट और शय्या आदि का प्रमाण प्रात्मांगुल से किया जाता है। मनुष्यों के २४ अंगुलों का एक हाथ होता है ।।६७-६६।। अब क्षेत्रमान का ज्ञापन कराने के लिए माप का प्रमाण कहते हैं: चतुःकरैर्धनुः प्रोक्तं धनुष द्विसहस्र कः । क्रोश एक छहाम्नातश्चतुःक्रोशैश्च योजनम् 11७०।। तस्मात्साध्यं च पन्धाधमुपमामानमञ्जसा । क्षेत्रमानमिति प्रोक्तं पूर्वशास्त्रानुसारतः ॥७१।। अर्थ:-२४ अंगुलों का एक हाथ और चार हाथ का एक धनुष होता है । दो हजार धनुष का एक कोश और चार कोश का एक योजन होता है ॥७०॥ इन पल्य, सागर, सूच्या गुल, प्रतरांगुल, घनांगल, जगच्छरणी, जगत्प्रतर और लोक का साधन इन्हीं योजन आदि से होता है । इसप्रकार परम्परागत शास्त्रानुसार क्षेत्रमान का प्रमाण कहा गया है ॥७१॥ अब काल मान के प्रमाण का दिग्दर्शन कराते हैं:-- कालमानमतो वक्ष्ये यथाम्नातं जिनाधिपः । लोकाकाशप्रदेशेषु कालाणयः पृथक पृथक् ॥७२।। तिष्ठन्त्येकक रूपेणा संख्याता रत्नराशिवत् । वर्तनालक्ष गंयेषां जीवपुद्गलयो योः ॥७३।। तं कालाणु लघूल्लंघ्य पुद्गलाण प्रयास्यति । यावत् कालप्रमाणेन स काल: समयाह्वयः ॥७४॥ प्रसंख्यसमपैरेकावलिः प्रोक्ता जिनागमे । संख्यावलिभिरुच्छ्वासः स्तोक उच्छ्वास सप्तभिः ॥७॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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