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________________ ६०४ ] सिद्धान्तसार दीपक मनुष्यों के भाठ बालों का मध्यम भोगभूमिज मनुष्यों का एक बाल होता है ॥ ५६ ॥ मध्यम भोगभूमिज आठ बालों का जघन्य भोगभूमिज मनुष्यों का एक बाल होता है ।। ६० ।। जघन्य भोगभूमिज आठ बालों का कर्मभूमिज मनुष्यों का एक बाल होता है, कर्मभूमिज मनुष्यों के आठ बालों की एक लिक्षा होती है || ६१ ॥ श्राठ लिक्षाओं की एक जु, आठ जु का एक यव और आठ यवों का एक थंगुल होता है, ऐसा गणवरादि देवों द्वारा कहा गया है || ६२ || अब गुलों के भेव और उनका प्रमाण दर्शाते हैं: उत्सेधाङ गुलमेवाचं प्रमाणाङ गुलसंज्ञकस् । प्रात्माङ्गुलमिति प्रोक्तमङ्गुलं त्रिविधं जिनैः ॥ ६३॥ प्रागुक्तमादिमं पञ्चशताभ्यस्तं मनीषिभिः । उत्सेधाङ गुलमेतत्प्रमाणाङ गुलमुच्यते ॥ ६४|| उत्सर्पिण्यवस पिण्योः षट्कालोत्पन्नजन्मिनाम् । वृद्धिह्रासशरीराणां बहुधात्माङ्गुलं भवेत् ।। ६५ ।। अर्थ - श्रा जी (यव) से जो अंगुल उत्पन्न होता है उसके श्री जिनेन्द्र देव ने उत्सेधाङ्गुल, प्रमाणागुल और आत्माङ्गुल के भेद से तीन प्रकार कहे हैं || ६३|| ऊपर जो जो का एक अंगुल कहा गया है, वही उत्सेधांगुल या व्यवहारांगुल कहलाता है। उस उत्सेधांगुल में ५०० का गुला करने से प्रमारांगुल होता है, ऐसा विद्वानों ने कहा है || ६४|| उत्सर्पिणी - श्रवसर्पिणी सम्बन्धी छड् कालों में ह्रस्व, दीर्घ अवगाह्ना को धारण कर जन्म लेने वाले मनुष्यों के अंगुल को श्रात्माङ्गुल कहते हैं ।। ६५ ।। अब किन अंगुलों से किन किन पदार्थों का माप किया जाता है, इसका व्याख्यान करते हैं: चतुर्गतिसमुद्भूतप्राणिनां वपुषां बुधः । उत्सेधाद्या निरूप्यन्ते उत्सेधाङ्गुलमानकैः ।। ६६ ।। द्वीपान्यक्षेत्र देशानां नदी ब्रहाविभूभूताम् । अकृत्रिमजिनागारादीनां व्यासोदयादयः ॥६७॥ प्रारणाङ्गुलमानश्च कीर्तिताः श्रोगणाः । ध्वजच्छत्ररथावा सघटशय्यासनाविषु ||६८ ||
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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