________________
पंचदशोऽधिकार :
[ ५६५
चार स्वर्गों में देवों के शरीर की ऊँचाई ४ हस्त प्रमाण होती है ॥२५४।। प्रानत-प्राणत कल्प में शरीर का उत्सेध ३३ हस्त प्रमाण तथा प्रारण-अच्युत स्वर्ग में देवों के शरीर का उत्सेध ३ हस्त प्रमाण है ।।२५।। तीनों प्रधो ग्रेवेयकों में उत्सेध २३ हस्त तथा तीनों मध्य प्रेवेयकों में देवों के शारीर का उत्सेधान्त प्रमागा है ।।२५६!! नीनों ऊर्ध्व ग्रेवेयकों में देह का उत्सेध १६ हस्त एवं नव अनुदिशों में काय उस्लेध १८ हस्त प्रमाण है ।।२५७/1 पंच अनुत्तरों में अहमिन्द्रों के तेजोमय, दिव्य वैक्रियक शरीर का उत्सेध एक हस्त प्रमाण होता है ॥२५८।। अब वैमानिक देवों के माहार एवं उच्छ्वास के समय का निर्धारण करते हैं:--
सौधर्मादियुगे देवानां द्विसहस्रवत्सरैः । गतराहार उच्छ्यासो भवत्पक्षद्वये गते ॥२५॥ द्वितीये युगले सप्तसहस्राब्दैविनिर्गसः । देवानां मानसाहार उच्छ वासः पक्षसप्तके ॥२६॥ तृतीयेऽब्दसहस्राणां नाकिनां दशभिर्गतः । सुधाहारोऽस्ति चोच्छ्वासो मनाक् पक्षदशातिर्गः ॥२६॥ चतुर्थे युगले वर्षचतुर्दशसहस्रकः । गते राहार उच्छ्वासो द्विसप्तपक्षनिर्गमः ।।२६२॥ पञ्चमे वत्सराणां गतैः षोडशसहस्रकः । सुधाहारो वरोच्छ्वासः पक्षः षोडशभिर्गतः ॥२६३।। षष्ठेऽतिगश्च वर्षाणामष्टादशसहस्रकः । मानसाहार उच्छ्वासः पक्षरण्टावसर्गतः ।।२६४॥ सप्तमे युगले वर्षगतविशसहस्रकः । सुधाहारो लघुच्छ्वासो विशपक्षविनिर्गतः ॥२६५।। अष्टमे नाकिना चाहारो द्वाविंशसहस्रकः । वर्षर्गतः शुभोच्छ्यासः पक्षार्थिनिर्गमः ।।२६६॥ प्राचे प्रयकेऽतीतस्त्रयोविंशसहस्रकः । वराहार उच्छ्वासः पक्षोनवर्षनिर्गमे ॥२६७॥