SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 610
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिद्धान्तसार दीपक सप्तमे युगले स्त्रीणां पञ्चाशस्पल्यजीवितम् । प्रष्टमे पञ्चपञ्चाशत्पल्यायुर्देवयोषिताम् ॥२५॥ ग्राह्य एकोपदेशो मध्येऽनोयरुपदेशयोः । प्रमाणीकृत्य तीर्थेशवचः छमस्थयोगिभिः ।।२५२।। अर्थः- सौधर्मशान नामक प्रथम युगल में देवियों की उत्कृष्ट माय पांच पल्य, एवं द्वितीय युगल में सात पल्य प्रमाण होती है ।।२४८।। तृतीय युगल में २५ पल्य, तथा चतुर्थ यगल में देवांगनाओं की उत्कृष्ट प्राय ३५ पल्य प्रमाण होती है ।।२४६।। पंचम युगल में ४० पल्य और षष्ठ युगल में देवांगनामों को उत्कृष्ट प्राय ४५ पल्प प्रमाण होती है ।२५०।। सप्तम युगल में देवांगनाओं की प्रायु ५० पल्य एवं अष्टम युगल में देवियों की उत्कृष्ट प्राय ५५ पल्य प्रमाण होती है ।।२५१।। तीर्थंकर देव के वचनों को प्रमाण करके छद्मस्थ योगिराजों के द्वारा उपयुक्त दोनों उपदेशों में से एक उपदेश हो ग्रहण करना चाहिये ॥२५२।। अब देवों के शरीर का उत्सेध कहते हैं: सौधर्मेशानयोयदेहः सप्तकरोन्नतः । सनत्कुमारमाहेन्द्रयोर्देवानां च षट्करः ॥२५३॥ स्याद् ब्रह्मादि चतुःस्वर्गे कायः पञ्चकरोच्छ्रितः । शुक्रादिकचतुर्नाके देवाङ्गोरुचः चतु :करैः ॥२५४॥ प्रानतप्राणते देवाङ्गः सार्धत्रिकरोवयः ।। प्रारणाच्युतयोः कायो देवानां त्रिकरोन्नतः ॥२५॥ सार्धद्विकरवेहोच्चोऽस्त्यधोग्रं वेयकत्रिषु । देवानां द्विकराङ्गोच्चो मध्यमे वेयकत्रिषु ।।२५६॥ सार्धकहस्तदेहोच्च ऊर्ध्व धेयकत्रिषु । नवानुदिशसंज्ञेग सपावक करोन्नतम् ॥२५७।। पश्चानुत्तरसंशेऽहमिन्द्राणां विस्फुरत्प्रमा। एकहस्तोन्नतो दिक्ष्यः कायोक्रियिको भवेत् ।।२५८।। अर्थ:-सौधर्मशान कल्प स्थित देवों के शरीर को ऊँचाई सात (७) हस्त प्रमाण एवं सानत्कुमार-माहेन्द्र में ६ हस्त प्रमाण है ॥२५३।। ब्रह्मादि चार स्वर्गों में ऊँचाई ५ हस्त एवं शुक्रादि
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy