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________________ ५४६ ] सिद्धान्तसार दीपक उपर्युक्त गद्य का सम्पूर्ण भर्थ निम्नाङ्कित तालिका में निहित है । विशेष इतना है कि एक एक महादेवियों की परिकार प्रादि देवांगनानों का एकत्रित प्रमाण भी दर्शा दिया है। क्रियिक शरीर परिवार देवांगनाएँ क्रमांक अनदेधियों का प्रमाण एक महा देवी का | पाठों महा देवी का | एक महा- पाठों महा देवां देवो को | गनाओं की सौधर्मशानेन्द्र मूल शरीर रहित १६००० १२८००० १६००० १२८००० २ साo-मा० " ॥ ३२००० २५६००० ८००० ६४००० ब्रह्मन्द्र ६४००० ५१२००० ४००० ३२००० लान्तवेन्द्र १०२४००० २००० १६००० ,, १२८००० ,, २५६००० २०४८००० १००० 5000 शतारेन्द्र ४०६६००० ५०० Yooo [मामतादि ४ इन्द्र | , , , १०२४००० ८१९२००० | २५० । २००० अब समस्त महावेवियों के प्रासादों को ऊँचाई आदि का प्रमाण कहते हैं:-- महादेवीसमस्तप्रासादानामुदयोधिकः । विशत्यायोजनानां स्यादवल्लभाभवनोदयात् ॥१७॥ प्रासादानां तथायामः स्वोत्सेधात् पञ्चमांशकः । पूर्षयदशमो भागो विष्कम्भः सर्वतो भवेत् ॥१७३।। अर्थ:-समस्त महादेवियों के प्रासादों की ऊँचाई वल्लभा देवांगनाओं के प्रासादों की ऊंचाई से बीस-बीस योजन अधिक है, पायाम अपनी अपनी ऊंचाई का पांचर्चा भाग और विष्कम्भ पूर्व के सदश अपनी अपनी ऊँचाई के दश भाग प्रमाण है ।।१७२-१७३।। (तालिका अगले पेज पर देखें)
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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