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________________ ५२६ ] सिद्धान्तसार दीपक कापिष्टे कोक एवास्ति शुक्र गरडवाहनम् । महाशुक्रे च देवानां मकरो वाहनं भवेत् ॥१११।। शतारे च मयूरः स्यात्सहस्रारेऽम्बुजं भवेत् । प्रानताविचतुष्केषु विमानं पुष्पकाह्वयम् ॥११२।। अर्थ:-सौधर्म स्वर्ग में इन्द्र का वाहन गजेन्द्र है, ईशान स्वर्ग में बोला, मसुमार स्वर्ग में सिंह, माहेन्द्र में बैल, ब्रह्म स्वर्ग में सारस, ब्रह्मोत्तर में कोयल, लान्तव में हंस, कापिष्ट में चक्रवाल, शुक्र में गरुड़, महाशुक्र में मगर, शतार में मयूर, सहस्रार में कमल और पानतादि चार स्वर्गों में कल्पवृक्ष का वाहन है ।।१०६-११२॥ प्रब दक्षिणेन्द्र-उत्तरेन्द्र के प्रमुख विमानों की चारों दिशाओं में स्थित विमानों के नामों का निरूपण करते हैं:-- स्वस्वेन्द्रविमानस्य स्वस्वकल्पायस्य च । स्युश्चत्वारि विमानानि पूर्वादि विक चतुष्टये ॥११३॥ प्राचं घड्यं साराख्यं रौप्यसाराभिधं ततः । अशोकसारसंक्षं च मिश्रसारमिमान्यपि ॥११४॥ पूर्वाधासु चतुर्दिा चत्वारः स्युबिमानकाः | सर्वेषां दक्षिणेन्द्राणां विमानानामनुक्रमात् ॥११॥ रुचकं मन्दरामिख्यमशोक सप्तपर्णकम् । चत्वारोऽमो विमानाः स्युः प्राच्यादि विक् चतुष्टये ॥११६॥ ईशानेन्द्रादि सर्वोत्तरेन्द्राणां क्रमत्तः परे । विमानानामयं शेयः क्रमोऽच्युतान्समञ्जसा ॥११७॥ अर्थ:--अपने अपने कल्प का नाम ही अपने अपने इन्द्र स्थित विमान का नाम है । इन्द्र स्थित विमान की पूर्व दक्षिण आदि चारों दिशाओं में क्रम से वैडूर्य सार, रौप्य सार (रजत), अशोक सार और मिश्र सार ( मृषत्कसार ) नाम वाले चार विमान अवस्थित हैं ॥११३-११४॥ सर्व दक्षिणेन्द्रों के विमानों की पूर्वादि चारों दिशाओं में अनुक्रम से उपर्युक्त नाम वाले चार चार विमान हैं ॥११॥ ईशान इन्द्र प्रादि सर्व उत्तरेन्द्रों के विमानों को पूर्वादि चारों दिशामों में अनुक्रम से रुचक,
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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