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________________ - - - - - - - - - - पंचदशोऽधिकार। [ ५०७ शा... सौधर्म नाममा प्रा में २१ पटल है । दूसरे सानत्कुमार युगल में सात. तीसरे ब्रह्म युगल में पार, चौथे लान्तव युगल में दो, पांचवें शुक्र युगल में एक, छठवें शतार युगल में एक, सातवें पानत युगल में तीन, आठवें पारण युगल में तीन, अधोवेयक में तीन, मध्यम प्रवेयक में तीन, ऊध्र्व ग्रं वेयक में तीन, नव अनुदिशों में एक और पांच अनुत्तरों में एक पटल है। इस प्रकार सौधर्म स्वर्ग से ऊपर ऊपर कल्प और कल्पातीत सर्व स्वों के पटलों की संख्या एकत्रित करने पर (३१+७+४+२+१+१+३+३+३+३+३+१+१= ) ६३ होती है । अर्थात् कुल ६३ पटल हैं ॥२१-२६ प्रव सौधर्मादि स्वर्गों के विमानों का प्रमाण कहते हैं: सौधर्मे स्युर्विमानानि लक्षा द्वात्रिंशवेव च । ऐशाने सद्विमाना लक्षा प्रष्टाविंशति प्रमाः ।।२७।। सनत्कुमारकल्पे द्वादशलक्षविमानका; । विमानाः सन्ति माहेन्द्र चाष्टलक्षप्रमाणकाः ॥२८॥ ब्रह्माकल्पे द्विलक्षेमा षणवत्या सहस्रकः । ब्रह्मोत्तरे व ते लक्षकं सहस्रचतुर्युतम् ॥२६।। लान्तवे सद्विमानानि द्विचत्वारिंशता समम् । पचविंशति संख्यानि सहस्राणि भवन्ति च ।।३०॥ कापिष्टे स्युविमानानि हष्टपञ्चाशता सह । नवसंख्यशतैर्युक्ताश्चतुर्विशसहस्रकाः ॥३१॥ शुक्रेविंशतियुक्तानि सहस्राणि तु विंशतिः । विमानानि महाशुक्रेशोत्यानवशतैर्युताः ॥३२।। एकोनविंशसंख्यानसहलाः स्युः शतारके । एकोनविंशसंयुक्तत्रिसहस्रा विमानकाः ॥३३।। सहस्रारे तथंकोनविंशोनत्रिसहस्रकाः । मानतप्राणताभिख्यकल्पद्वयोविमानकाः ॥३४॥ चतुःशतानि चत्वारिंशद् युतान्यारणाच्यते । विमानाः षष्टि संयत शतद्वयप्रमाणकाः ॥३५॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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