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________________ ४३८ ] सिद्धांतसार दीपक अर्थ:--प्रत्येक कलों में एक एक इन्द्र के परिवार में प्रतीन्द्र, लोकपाल, पायस्त्रिश, सामानिक, ।। अंगरक्षक, तोन प्रकार के परिषद, अनोक देव, प्रकीर्णक देव आभियोग्य और किल्विषिक ये दस दस भेद होते हैं ॥५७-५८।। अब इन्द्रादिक पदवियों के दृष्टांत कहते हैं :--- एकैकस्यापि शक्रस्य पृथग्भूताः स्वपुण्यजाः । इन्द्राः सर्वेऽमरैः सेव्या राजतुल्या महद्धिकाः ॥५६॥ युवराजसमा विश्वे प्रतीन्द्राः सुरसेविताः । स्वप्रधानसमा लोकपाला देवाः प्रकीर्तिताः ॥६॥ पुत्रादिसमसस्नेहास्त्रास्त्रिशसरा मताः । मान्यपासालानाः स्युः सवालमाननिदाः ॥दए। अङ्गारक्षसमा अङ्गरक्षा इन्द्रान्ततिनः । अन्तर्मध्यान्तभेदेन त्रिविधाः परिषत्सुराः ॥६२।। सेनातुल्या अनीका: प्रकीर्णका नागरोपमाः । भृत्यवाहनसादृश्या प्राभियोगिक निर्जराः ॥६३।। स्वपापपुण्यमोक्तारः किल्विषिका इवान्त्यजाः । इत्यमी कार्यकर्तार इन्द्राणां च पृथग्विधाः ॥६४।। अर्थः-अपने अपने पुण्य कर्मोदय से एक एक इन्द्र के पृथक् पृथक् प्रतीन्द्र प्रादि दस दस प्रकार के देव होते हैं। इनमें सर्व देवों से सेव्यमान महाऋद्धि का धारक इन्द्र राजा सहश होता है । सवं प्रतीन्द्र युवराज सदृश, सर्व लोकपाल मन्त्री सदृश, सर्व त्रायस्त्रिंश देव स्नेह के भाजन स्वरूप पुत्र आदि के सदृश, सर्व सामानिक देव मान्यपात्र अर्थात् सम्माननीय व्यक्तियों सदृश, इन्द्र के समीप रहने वाले अंगरक्षक देव राजाओं के अंगरक्षक सदृश, तीनों प्रकार के पारिषद् देव, राजा की अभ्यन्तर, मध्य और बाह्य सभा के सहश, अनोक जाति के देव सेना सश, प्रकीर्णक देव नागरिक-प्रजा सदृश, आभियोग्य देव दास एवं सवारो सहा और किल्वि षिक जाति के देव चाण्डालों आदि के सहश होते हैं। अपने अपने पाप और पुण्य के फलों को भोगते हुये ये सभी देव इन्द्र का पृथक् पृथक कार्य करते हैं ॥५६-६४।। अब इन्द्रादिक पाँच प्रकार के देवों में विभूति प्रादि की समानता-असमानता दर्शाते हुये चारों लोकपालों का अवस्थान कहते हैं :--
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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