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________________ ३६ ] सिद्धान्तसार दीपक श्रर्थः पृथ्वी के चार भेद कहे गये हैं, पृथ्वी, पृथिवोकाय, पृथिवोकायिक और पृथ्वीजीव ॥ १०॥ विद्वानों के द्वारा मार्ग की उपमदित धूल को पृथिवी कहा गया है। तथा आगम में निर्जीव ईंट आदि को पृथिवीकाय, सम्पूर्ण सजीव पृथ्वी को पृथिवीकायिक और पृथिवीकायिकों में जाते हुए, पृथिवी कार्यिक नामकर्म के उदय से युक्त विग्रहगति में स्थित जीव को पृथिवी जीव कहा है ।।११-१२ ।। नोट :- पृथ्वी और पृथ्वीकाय यद्यपि दोनों प्रचित्त हैं, तथापि पृथ्वी में पुनः जीव उत्पन्न हो सकता है किन्तु पृथ्वीकाय में पुनः पृथ्वी जीव उत्पन्न नहीं हो सकता । : इसी प्रकार अब जल, अग्नि और वायु के चार-चार भेद और लक्षण कहते हैं :अप् तथैवाशरीरं चाऽपकायिकोऽजीव इत्यपि । भेदाश्चत्वार श्राम्नाता जिनश्कायकात्मनाम् ॥ १३ ॥ जल मान्दोलितं लोकंः सकर्वमं तथाप मदेत् । उष्णोदकं च निर्जीवमन्यद्वाय्काय उच्यते ॥ १४ ॥ जलकाययुतः प्राणी चापकायिको निगद्यते । अप्कायं नेतुमागच्छन् जीवोऽपूजीवो गतौ मयेत् ।।१५।। पूर्व तेजश्च तेजः कायस्तेजः कायिकस्तथा । तेजोजोव इमे भेवाश्चत्वारस्तेजसां मताः ॥१६॥ भस्मनाच्छादितं तेजो मात्रं तेजः प्ररूप्यते । जीवोज्झितं च भस्मादि तेजःकाय इहोच्यते ॥१७॥ तेजःकायमयो देही तेजःकायिक इष्यते । तेजोऽङ्गार्थं व्रजन्मार्गे तेजोजीष मतो बुधैः ॥ १८॥ वायुश्च वायुकायोऽथ तृतीयो वायुकाधिकः । वायुजीव इमे भेदाश्चत्वारो वायुदेहिनाम् ॥१६॥ रजःपुञ्जमयो वायुभ्रं मन् वाजिनः स्मृतः । जीवातीतो मरुत्पुद्गलो वायुकाय ईरितः ||२०|| वायुः प्राणमयः प्राणी प्रोदितो वायुकायिकः । बाताङ्गयं व्रजन्मार्गेऽङ्गी वायुजीब उच्यते ॥ २१ ॥ श्रर्थः - जिनेन्द्र भगवान् ने जलकाय जीवों के जल, जलकाय, जनकायिक और जलजीव इस प्रकार चार भेद कहे हैं || १३ || लोगों के द्वारा ग्राडोलित एवं कीचड़ सहित जल को जल कहते हैं । उष्ण निर्जीव जल को जलकाय, जलकाय युक्त जीव को जलकायिक तथा जलकाय में जन्म लेने के
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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