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________________ एकादशोऽधिकार [ ३९७ लिए जाते हुए विग्रहगति में स्थित जीव को जलजीव कहते हैं ॥१४-१५। पूर्ववत् तेज काय जीवों के तेज, तेजकाय, तेजकायिक और तेज जीव इस प्रकार चार भेद कहे हैं ।। १६ ॥ भस्म से आच्छादित अग्नि को अर्थात् किञ्चित उष्ण भस्म को तेज कहते हैं। जिसमें से जीव निकलकर चला गया है, उस भस्मादि को तेज काय कहते हैं। तेज काय सहित जीव को तेजकायिक और तेजनाम कर्म से युक्त जो जीव विग्रहगति में स्थित हैं उन्हें विद्वानों ने तेजजीव कहा है ।।१७-१८।। बायु जीवों के वायु, वायुकाय, वायुकायिक और वायुजीव इस प्रकार चार भेद होते हैं ।।१६।। धूलपुञ्ज से युक्त भ्रमण करती हुई वायु ( प्राधियों ) को जिनेन्द्र देव न वायु कहा है । जीव से रहित पंखे आदि को पोद्गलिक वायु देह को वायु काय कहते हैं। प्राण युक्त बाय का वायुकायिक और वायुगति में आने वाले विग्रह गति स्थित जीव को वायु जोष कहते हैं 11२०-२१॥ मन वनस्पति के चार भेद कह कर उनके भिन्न भिन्न लक्षण बतलाते हैं :-- प्रादौ वनस्पतिश्चाथ बनस्पतियपुस्ततः । वनस्पत्यादिकः कायिको वगरपतिबीयवार :२॥ घनस्पत्या प्रमी भेदाश्चत्वारः कीर्तिता जिनः। अन्तर्जीक्यतोबाह्यत्यक्तजीवो वनस्पतिः ॥२३॥ वनस्पतिवपुः स्मृतः छिन्नभिन्न तृणादिकम् । वनस्पत्यङ्गयुक्तोऽङ्गीस्यादनस्पतिकायिकः ॥२४॥ प्राकशरीरपरित्यागे वनस्पत्यसिद्धये ।। प्रारणान्तेऽङ्गी गति गच्छन स्याद्वनस्पतिजीयवाक ॥२५॥ अर्थः--वनस्पति, वनस्पतिकाय, वनस्पतिकायिक और वनस्पति जीव ऐसे वनस्पति के चार भेद जिनेन्द्र देव के द्वारा कहे गये हैं । अभ्यन्तर भाग जीव युक्त है और बाह्य भाग जीव रहित है. ऐसे वृक्ष प्रादि ( कटे हुए हरे वृक्ष ) को बनस्पति कहते हैं ॥२२-२३॥ छिन्नभिन्न किये हुए तृणादिक को वनस्पति काय माना गया है, जीव सहित वनस्पति काय को वनस्पति कायिक कहते हैं, और पाय के अन्त में पूर्व शरीर को त्याग कर जो जीव बनस्पति काथिकों में उत्पन्न होने के लिये विग्रहगति में जा रहा है, उसे वनस्पति जीव कहते हैं ।।२४-२५॥ अब इन पंच स्थावरों के चार चार भेवों में से कितने चेतन और किसने प्रचेतन हैं इसका निर्धारण करते हैं :-- एतेषां प्राक्तनो भेदःकिश्चित्प्राणाश्रितो मतः । पृथ्व्यादीनां द्वितीयस्तु केवलं जीषपूरगः ॥२६॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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