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________________ सिद्धान्तसार दीपक रुचकगिरि के कूटों आदि का चित्रण निम्न प्रकार है :-- Rania HAN SESA JAN 46.Net Lt-na AADSHAD A HARIHAR Matar --:-. -IAF 44AY .RA.R/ eo 44 ANDH SMSION alsr L Trol UAEAda U-AR कर. sammar ONEY सब कुछ द्वीप समुद्रों के नाम और व्यास कह कर उनको प्रकृत्रिमता बतलाते हैं : प्रथास्ति भुजगदीपस्ततः कुमावराभियः । द्वीपः कोऽधवराभिस्यो द्वीपो मनः शिलाख्यकः ॥३१॥ हरितालाहयो द्वीपो द्वीपः सेन्दुरसंज्ञकः । श्यामाको जनकद्वीपो हिगुलाख्यश्च रूप्यकः ॥३२॥ द्वीपः सुवर्णनामाथ द्वीपो बञाभिधानकः । वैडूर्यसंज्ञको भूतवरो यक्षवराभिषः ॥३८३॥ देवद्वीपस्तथाप्यन्ये शुभसामान आजताः। द्विगुणद्विगुणन्यासा द्वीपाः स्युः संख्पवजिताः ॥३४॥ समस्तद्वीपराशीनां सर्वेष चान्तरेषु । स्वस्यद्वीपोत्यनामानोऽसंख्येयाः सन्ति सागराः ॥३८५।। एते द्वीपाब्धयोऽसंख्या म केनापि विनिर्मिताः । किन्त्वविनावरा विश्वे सन्त्यनाचमनोहराः ॥३६॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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