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[ ४३ ] म सं. पृष्ठ सं० । क्रम सं०
पृष्ठ संग अधोलोकजन्य प्रत्येक भूमिका भिन्न-भिन्न १६ काल मान के प्रमाण का दिग्दर्शन ६०५ घनसम
६६ २० व्यवहार काल के भेदों में से पूर्वाग ७ प्रत्येक स्वर्ग का भिन्न-भिन्न धनफल ५६२ यादि के लक्षगा ५ लोक और लोकोत्तर मानों का वर्णन ५६३ | २१ भाव मान का वर्णन ९ द्रव्यमान के भेद-प्रभेद
५९४ | २२ ग्रन्थ रचना का आधार १० उपमा मान के पाठ भेद
५६६ } २३ ग्रन्थ के प्रति आशीर्वचन ११ व्यवहार पल्य और उसके रोमों की २४ ग्रन्थ के स्वाध्याय से फल प्राप्ति सख्या
२५ शास्त्र श्रवण करने का फल १२ उद्धार पल्य और द्वीप समुद्रोंका प्रमाण ६००
२६ शास्त्र लेखन का फल १३ प्राधार (अद्धा) पल्य एवं प्राधार सागर २७ शास्त्र लिखवाने का फल
६१२ का प्रमाण
२८ शास्त्र अध्ययन कराने का फल
६१३ १४ सून्य मुलसे लेकर लोक पर्यंतका प्रमाण ६०२
२६ इस ग्रन्थ की रचना करक प्राचार्य श्री १५ अणु का लक्षण व अंगुल पर्यन्त मापों
क्या चाहते हैं ?
६१३ का प्रमाण
६०३
३० प्राचार्य श्री की मंगल याचना १६ अंगुलों के भेद और उनका प्रमाण ६०४
३१ सिद्धान्तग्रन्थ की वृद्धि की वाञ्छा ६१४ १७ किन अंगुलों से किन-किन पदार्थों का
३२ कुल श्लोक संख्या को सूचना ___ माप होता है ? १८ क्षेत्रमान का ज्ञापन कराने के लिये मान
का प्रमाण
६१२
६०१