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________________ ५६१ ५६४ [ ४२ ] क्रम सं. पृष्ठ सं० क्रम सं० ४७ वानिक देवों के जन्म मरण के अन्तर ६५ इन्द्रादि देवों द्वारा की जाने वाली का निरूपण ५५५ जिनेन्द्र पूजा ५७७ ४८ इन्द्रादिकोंके जन्ममरण का उत्कृष्ट अंतर ५५६ / ६६ मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि की पूजन के ४६ देव विशेषों के अन्तिम उत्पत्ति स्थानों ___अभिप्राय में अन्तर तथा सम्यक्त्व प्राप्ति का प्रतिपादन ५५७ का हेतु ५० प्रथमादि युगलों में स्थित देवों की ६७ अकृत्रिम-वात्रिम जिनबिम्बों के पूजनस्थिति विशेष ५५७ मर्चन का वर्णन ५७६ ५१ देबों में घायु की हानि एवं वृद्धि के |६८ इन्द्रादि देवोंके इन्द्रियजन्य सुखोंका वर्णन ५८० कारण तथा आयु का प्रमाण | ६६ किन क्रियानों द्वारा स्वर्गादि सुखों की ५२ कल्पवासो देवांगनाओं की उत्कृष्ट प्रायु प्राप्ति होती है ? का प्रमाण ७० कौन-कौन से जीव किन-किन स्वर्गों तक ५३ देवांगनाओं की (अन्य शास्त्रोक्त) उत्पन्न होते हैं ? ५८२ उत्कृष्ट प्रायु ७१ स्वर्गों से च्युत होने वाले देवों को प्राप्त ५४ देवों के शरीर का उत्सेध गति का निर्धारण ५८३ ५५ वैमानिक देवों के प्राहार एवं उच्छवास ७२ स्वर्गस्थित मिथ्यारष्टि देवोंके मरणचिह्नः के समय का निर्धारण । उन्हें देखकर होने वाला प्राध्यान और ५६ लौकान्तिक देवों के अवस्थान का स्थान उसका फल ५८४ एवं उनकी संख्या का प्रतिपादन ५६७/७३ मरणचिह्नों को देखकर सम्यग्दृष्टि देवों ५७ लोकान्तिक देवों के विशेष स्वरूप का | का चिन्तन ५८५ एवं उनकी आयु का प्रतिपादन ५६६ | ७४ धर्म के फल का कथन तथा व्रत-तप ५८ किस-किस संहनन वाले जीव कहाँ तक आदि करने की प्रेरणा ५८७ उत्पन्न होते हैं ? ५७१ | ७५ धर्म की महिमा ५८७ ५६ वैमानिक देवों की लेश्या का विभाग ५७१ | ७६ अधिकारान्त मंगलाचरण ५८७ ६० वैमानिक देवों के संस्थान एवं शरीर षोडश अधिकार/पन्यादि मान वर्णन को विशेषता ५७२ ६१ देवों की ऋद्धि प्रादि का वर्णन ५७३ १ मङ्गलाचरण ५५६ ६२ वैमानिक देवों का विशेष स्वरूप एवं २ अष्टम पृथ्वी की अवस्थिति और उसका उनके सुख का कथन ५७३ प्रमाण ६३ उत्पन्न होने के बाद देवगण क्या-क्या ३ सिद्ध शिला की अवस्थिति, प्राकार एवं विचार करते हैं, ५७४ प्रमाण ५८६ ६४ पूर्वभव में किये हुए धार्मिक अनुष्ठान ४ सिद्ध भगवान् का स्वरूप ५६० श्रादि का तथा धर्म के फल का चिंतन ५७५ । ५ सिद्धों के सुखों का वर्णन ५९० ५६५
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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