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________________ ३५६ ] सिद्धांतसार दीपक अब कालोदधि समुद्र को परिधि का प्रमाण और पुष्कर द्वीप का सविस्तर वर्णन करते हैं : एकानवति लक्षाणि सहस्राणि च सप्ततिः । पञ्चाग्रषट्शतानीति कृतयोजनसंख्यया ॥ १६३ ॥ कालोदकसमुद्रस्य परिधिः श्रीजिनोबिता । ततो द्विगुणविस्तारो द्वीपोऽस्ति पुष्कराह्वयः ॥ १६४ ॥ House वाष्टलक्षाणि योजनानि विमुच्य च । नित्यः स्वर्णमयस्तिष्ठेन्मानुषोत्तरपर्वतः ।।१५।। ततः सार्थकनामासौ पुष्करार्ध इहोच्यते । विस्तृतो योजनैरष्टलक्षः पुष्करवृक्षभृत् ॥ १९६ ॥ इक्ष्वाकारनगौ स्लोऽस्य दक्षिणोत्तरयोदिशोः । द्वीपव्याससमायामी दिव्य चैत्यालयाङ्कितौ ॥१६७॥ प्रागुक्तोन्नतिव्यासाठी चतुःकूटविराजितौ । ताभ्यां द्वीपः स संजातः पूर्वापरद्विधात्मकः ॥१६८॥ मध्ये प्राक् पुष्करार्धस्य मेरुमन्दरसंज्ञकः । व्यासोत्सेधपरिध्याद्यै पतिकीखण्ड मेरुवत् ॥ १६६ ॥ तत्समः पुष्करार्धस्यापरस्य मध्यभूतले । विद्युन्मालायो मेरुः स्यात्पूर्ववर्णनायुतः ||२००॥ अर्थ:-श्री जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कालोदधि समुद्र को सूक्ष्म परिधि का प्रमाण ३१७०६०५ योजन कहा गया है। इस कालोदधि समुद्र के आगे कालोदधि समुद्र से दूने ( १६ लाख योजन ) विस्तार वाला पुष्करवर द्वीप है ।।१६३ - १६४ ।। इस पुष्करवर द्वीप के मध्य में पाठ लाख योजन छोड़ कर शास्त्रत और स्वर्णमय मानुषोत्तर नाम का पर्वत यवस्थित है ।। १६ ।। इस पर्वत से पुष्करवर द्वीप के दो भाग कर दिये गये हैं, इसीलिये इस द्वीप का सार्थक नाम पुष्करार्धं कहा जाता है । पुष्करार्ध द्वीप आठ लाख योजन विस्तृत और पुष्कर ( ऐरण्ड ) के वृक्ष को धारण करने वाला है || १६६ | इस पुष्करार्ध द्वीप की उत्तर और दक्षिण दिशा में दिव्य चैत्यालयों से अलंकृत दो इष्वाकार पर्वत हैं, जिनका आयाम द्वीप के व्यास प्रर्थात् बाठ-आठ लाख योजन प्रमारण है || १६७ || ये दोनों इष्वाकार पर्वत पूर्वोक्त उत्सेध और व्यास से युक्त अर्थात् ४०० योजन ऊँचे और १००० योजन चौड़े चार चार कूटों से सुशोभित हैं । इन्हीं दोनों पर्वतों के कारण पुष्करार्थ द्वीप, पूर्व पुष्करार्ध और पश्चिम पुष्करार्धं
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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