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________________ दशमोऽधिकारः [ ३५७ के भेद से दो प्रकार का होता है ।। १६८ ।। पूर्व पुष्करार्ध के मध्य में मन्दर नाम का मेरु पर्वत है, इसके व्यास, उत्सेध और परिधि आदि का प्रमारण धातकीखण्डस्य मेरु पर्वत सदृश है ॥ १६६ ॥ पश्चिम पुष्करार्ध के मध्य भूतल पर मन्दर मेरु के सदृश विद्युन्माला नाम का मेरु पर्वत है, जिसका सम्पूर्ण वरन धातकीखण्डस्थ मेरु पर्वत सदृश है |२०० अब पुष्कराद्वीप का सूची व्यास, परिधि और पवंत अवरुद्ध क्षेत्र का प्रमाण कहते हैं --: एतस्य मध्यसूचीस्यात् पुष्करार्धस्य मध्यगा । सप्तभिः संयुता त्रिशलक्षयोजनसम्मिता ॥ २०१ ॥ एकाकोटी च लक्षाधिकस्टम | चतुःशतानि सप्तविंशतिश्चेति योजनः ॥ २०२ ॥ तस्या मध्यम सूच्या हि परिधिर्वणितागमे । सूक्ष्मा सूक्ष्माखिलात्मादितत्वविद्भिनं चेतरा ॥२०३॥ प्रोदिता पुष्करार्धस्य बाह्यसूची जिनाविभिः । पञ्चसंयुक्त चत्वारिशल्लक्षयोजनामा || २०४ ॥ एकाकोटी द्विचत्वारिशल्लक्षास्त्रिशदेव हि । सहस्र द्वे शते कोनपञ्चाशदिति स्फुटम् || २०५ ।। योजनंर्बाह्यसूच्या हि परिधिः श्रीजिनर्मता । कोशद्वयाधिका मानुषोत्तराभ्यन्तरावनौ ।।२०६ ।। त्रिलक्षा: पंचपंचाशत्सहस्राणि शतानि षट् । तथा चतुरशीतिश्चतुः कलायोजनस्य च ॥२०७॥ एकोनविभागानामिति योजनसंख्यया । पुष्करार्धस्य संख्द्धक्षेत्रं चतुर्दशाचलः ||२०८ || अर्थ:- इस पुष्करार्ध द्वीप के मध्य में मध्यम सूचो व्यास ३७००००० लाख योजन प्रमाण है || २० १|| समस्त सूक्ष्म आत्मतत्व आदि को जानने वाले गणधरादि देवों के द्वारा जिनागम में इस मध्यम सूची व्यास को सूक्ष्म परिधि ११७००४२७ योजन कही गई है । यह प्रमाण सूक्ष्म का है, स्थूल परिधि का नहीं ।।२०२ - २०३ ।। जिनेन्द्रों के द्वारा पुष्करार्ष का वाह्य सूची व्यास ४५००००० योजन
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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