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________________ दशमोऽधिकार : [ ३५५ इनकी परिवार नदियों की समस्त संख्या ३५८४१८० कही गई है ॥१८३-१८४॥ सीता-सीतोदा नदियों के मध्य में ४० द्रह स्थित हैं। यहाँ के अन्य हृद एवं वन आदिकों की संख्या जम्बुद्वीपस्थ द्रहादिकों की संख्या रो दूनी दूनी है ॥१८५। इस धातकी खण्ड के संरक्षक प्रभास और प्रियदर्शी नाम के दो प्रधिपति देव हैं, जो अपने मुकुटों को शिखरों पर जिनबिम्ब को धारण करते हुए क्रमशः दक्षिण और उत्तर दिशा सम्बन्धी धातको वृक्षों पर रहते हैं ॥१६॥ अब कालोदधिसमुद्र का सविस्तर वर्णन करते हैं :-- तं द्वीपं पातकोखण्डमावेष्टयपरितिष्ठति । लक्षाष्टयोजनव्यासः कालोबधारिधिमहान ॥१७॥ सयंत्रास्यावगाहोऽस्ति सहस्रयोजनप्रमः । प्रागुक्तोल्सेविस्तारः प्राकारो वेधिकाशितः ।।१८८॥ चतुदिश्वस्य शालस्य चत्वारि गोपुराणि च । गङ्गादि सरितां सन्ति द्वाराणि च चतुर्दश ॥१८६।। द्वीपाः सन्त्यष्टचत्वारिंशत्कमत्ययुगान्विताः । कालोदतटयोरन्तर्भागयोरुपरि स्थिताः ॥१६०॥ पातालानि न सन्त्यत्र नोमिवृद्धयावयः क्वचित् । टोत्कीर्ण इवास्स्येष सर्वत्र समगाहधृत् ॥११॥ कालाख्यो रक्षकोऽस्याब्धेः स्वामीविग्भागदक्षिणे। व्यन्तरश्च महाकाल उत्तरास्य दिशि स्थितः ॥१६२।। अर्थ:-उस घातको खण्ड द्वीप को परिवेष्ठित करके पाठ लाख योजन विस्तार वाला कालोदधि नाम का महान समुद्र अवस्थित है ।।१८७।। प्राकार एवं वेदिका आदि से अलंकृत इस समुद्र का अवगाह सर्वत्र १००० योजन प्रमाण है, तथा उत्सेध और विस्तार आदि का प्रमाण पूर्व कथित प्रमाण है। इसके कोट की चारों दिशाओं में चार गोपुर और गंगादि नदियों के समुद्र में प्रवेश करने के चौदह द्वार हैं ।।१८८-१८६।। कालोदधि समुद्र के दोनों तटों से भीतर की ओर जल के मध्यभाग में अड़तालीस अडतालीस कुमोगभूमियाँ हैं, जिनमें युगल कुमानुष रहते हैं ॥१९०|| लवरण समुद्र के समान इस समुद्र में न पाताल हैं, और न कभी लहरों की वृद्धि आदि ही होती है। यह समुद्र सर्वत्र समान गहराई को धारण करता हुआ दंकोत्कीर्ण के सदृश अवस्थित है ।।१६।। इस समुद्र का काल नाम का रक्षक देव समुद्र की दक्षिण दिशा में और महाकाल नाम का अधिपति ध्यन्तर देव समुद्र की उत्तर दिशा में निवास करते हुए समुद्र की रक्षा करते हैं ॥१२॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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