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________________ दशमोऽधिकारः [ ३२६ योजन मुख व्यास थाले १२५ जघन्य पाताल हैं, इन सबका मुख व्यास ( १२५४१००= ) १२५०० यो० होता है। ज्येष्ठ और मध्यम पाताल के अन्तर प्रमाण ११३०५५ यो० १३ कोश में से मुख व्यास घटा कर अवशेष को १२६ ( क्योंकि प्राजु बाजू के दिशागत और विदिशागत पातालों सहित १२७ पाताल हैं, अत: १२७ पातालों के १२६ अन्तराल होते हैं। ) से भाजित करने पर समस्त क्षुल्लक पातालों के बीच का अंतराल जिनागम में (११३०८५ यो०१३ कोश-१२५०० यो० - १००५८५ यो० १३ कोश-: १२६) = ७६८.+ + योजन . कहा गया है १३ कोश में १२६ का भाग देने पर ३xx =3 योजन प्राप्त होते हैं ।।४४-५३॥ अब लवणोदक समुद्र के प्रतिपालक नागकुमार श्रादि देवों के विमानों की संख्या को तीन स्थानों के प्राश्रय से कहते हैं :-- बेलन्धराधिपा नागा नागवेलम्धरैः समम् । वसन्ति पर्वताप्रस्थनगरेषु मुवाम्बुधी ॥५४॥ नागा द्वयधिक चत्वारिंशत्सहस्रप्रमाः सदा । अध्यायतिरजां बेला धारयत नियोगः ॥५॥ द्वासप्ततिसहस्राश्च बाह्यवेलां जलोजिताम् । धारयन्त्यम्बुधौ नागा जलक्रीडापरायणाः ॥५६।। अष्टाविंशतिसंख्यातसहस्रनागनिर्जराः । महवनोदकं नित्यं धारयन्ति यथायथम् ॥५७॥ अर्थ:-वेलन्धर नागकुमारों के स्वामी अपने वेलन्धर नागकुमारों के साथ पर्वतों के अग्रभाग पर स्थित नगरों में प्रति प्रसन्नता पूर्वक निवास करते हैं। लवरणसमुद्र के प्रम्यन्तर भाग ( जम्बूद्वीप को और प्रविष्ट होने वाली वेला ) को अपने नियोग से व्यालोस हजार नागकुमार देव रक्षा करते हैं। समुद्र के बाह्यभाग ( धातको खण्ड द्वीप को पोर को वेला ) को जलक्रीड़ा में परायण बहत्तर हजार नागकुमार देव धारण ( रक्षा ) करते हैं, और जल के महान् अग्रभाग को अर्थात् सोलह हजार ऊंची जल राशि को निरन्तर अट्ठाईस हजार नागकुमार देव धारण करते हैं । अर्थात् रक्षा करते हैं ॥५४-५७।। नोट :-तिलोय पणपत्ति, त्रिलोकसार और लोक विभाग में लवण समुद्र के बाह्याभ्यन्तर भाग में और शिखर पर जल से कार पाकाश तल में नागकुमार देवों के ४२०००, ७२००० और २८००० नगरों या विमानों का प्रमाण कहा है, देवों का नहीं। प्रब लवणसमुद्र की वेदियों के प्रागे दिशाओं प्रावि में स्थित बसोस पर्वतों के नाम, प्रमाण एवं उनके प्राकार प्रादि का निरूपण करते हैं :--
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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