SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 374
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२८ ] सिद्धांतसार दीपक मध्यमा परिधिः प्रोक्तो मध्यसूच्या महाम्बुधेः । चतुर्थ भागएवास्थाः परिधेर्यः पृथक् कृतः ।।४।। दिक पातालमुख वनासहीनः सोऽत्रान्तरं मवेद । चतुरणी ज्येष्टपातालानां पृथग भूतमञ्जसा ॥४६।। द्वौ लक्षौ च सहस्राणि सप्तविशतिरेव हि । शतकं सप्ततिर्योजनानां क्रोशास्त्रयः स्फुटम् ॥४७॥ इत्येवं संख्यया तेषां ज्येष्टानामन्तरं मतम् । तस्याध मध्यमानां स्यान्मुखव्यासोनमन्तरम् ॥४८॥ योजनानां च लक्षक सहस्राणि त्रयोदश । पंचाशीतिमा साईको इसाङ्क हारयः | मध्यमानां चतुर्णां पातालानामन्तरं पृथक् । विभक्तमन्तरं चोनं मुखव्यासैस्तदेव हि ॥५०॥ पातालक्षुल्लकानां पञ्चविंशानशतात्मनाम् । अन्तररन्तरं प्रोक्त षड्विंशाग्रशतप्रमः ॥५१॥ योजनानां शतान्येव सप्ताष्टानवतिस्तथा । योजनकस्य भागानां षर्विशाग्रशतात्मनाम् ॥५२॥ सप्तत्रिंशत्प्रमा भागा इत्यङ्कसंख्ययान्तरम् । मतं क्षुल्लकपातालानां सर्वेषां जिनागमे ॥५३॥ अर्थः-लवण समुद्र की मध्यम सूची व्यास की मध्यम मूल्य परिधि का प्रमाण ६४८६८३ योजन प्रमाण है। इस मध्यम परिधि के चतुर्थ भाग (13 - २३७१७०३ यो०) में से लत्कृष्ट पाताल के मुख व्यास का प्रमाण (१० हजार यो०) घटा देने पर दिशा सम्बन्धी उत्कृष्ट पातालों का पृथक पृथक् अन्तर ( २३७१७०१-१०००० = २२७१७०३ यो० ) प्राप्त होता है । अर्थात् पूर्व दिशागत उत्कृष्ट पाताल के मुख से दक्षिण दिशा गत उत्कृष्ट पाताल के मुख पर्यन्त २२७१७०३ योजन का अन्तर है। इसी प्रकार दक्षिण से पश्चिम, पश्चिम से उत्तर और उत्तर से पूर्व में जानना। इन उत्कृष्ट पातालों के अन्तर प्रमाण में से मध्यम पाताल के मुख ध्यास (१०००) को कम करके ग्राधा करने पर [(२२७१७०३१०००)२=] ११३०८५ यो० और डेढ़ कोश (३) प्राप्त होते हैं, यही चारों विदिशाओं गत चार मध्यम पातालों का चारों दिशा गत ज्येष्ठ पातालों से पृथक् पृथक् अन्तर का प्रमाण है । अर्थात् पूर्व दिशागत ज्येष्ठ पाताल और आग्नेय दिशा गत मध्यम पाताल के मुखों में ११३०८५ योजन और १३ कोश का अन्तर है । इसी प्रकार अन्यत्र जानना । विशागत और बिदिशागत पातालों के मध्य में १००
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy