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________________ नवमोऽधिकारः [३०३ ऊँचाई ६० धनुष और आयु एक लाख पूर्व की थी। यह भी रत्नत्रय से भ्रष्ट होने वालों का पुत्र है। ॥२५०।। सुप्रतिष्ठ का उत्सेध ८० धनुष और आयु ८४ लाख वर्ष की थी ॥२५१॥ मचल रुद्र का उत्सेध ७. धनुष और प्रायु ६० लाख वर्ष की थी, इसके माता पिता भी चारित्र रूपी रत्न को नष्ट करने वाले थे ।।२५२।। दीक्षा लेकर जो भ्रष्ट हो चुके थे ऐसे मुनि श्रायिका से उत्पन्न होने वाले पुण्डरीक रुद्र का उत्सेध ६० धनुष और प्रायु ५० लाख वर्ष की थी ।। २५३ ।। अजितन्धर रुद्र का उत्सेध ५० धनुष और आयु ४० लाख वर्ष को थी ।। २५४ 1। चारित्र से चलायमान हो चुकी थी प्रात्मा जिनको ऐसे मुनि प्रायिका से उत्पन्न जितनाभि रुद्र का उत्सेध २८ धनुष और आयु २० लाख वर्ष प्रमाण थी ।।२५५।। व्रत और शील से च्युत मुनि आयिका से उत्पन्न होने वाले पीठ रुद्र का उत्सेध २४ धनुष और प्राय एक लाख वर्ष प्रमाण थी ।।२५६।। अपने जीवनकाल में ही चारित्र को छोड़ देने वाले मुनि प्रायिका से उत्पन्न हुए सास्विकौतनय रुद्र का उत्सेध सात हाथ प्रमाण और वायु ६६ वर्षे प्रमाण थी ॥२५७।। प्रम रद्रों का वर्तनाकाल कहते हैं :-- जातो नाभेयकाले द्वायेतो भीमवली भुवि । पुष्पदन्तस्य कालेऽभूज्जितारिः श्रीजिनेशिनः ॥२५८।। रुद्रो विश्वानलो जातः काले श्रीशीतलस्य च । श्रेयसो वर्तमाने काले सुप्रतिष्टसंजकः ।।२५६॥ वासुपूज्यस्य काले प्रवर्तमानेऽचलोऽभवत् । काले विमलनाथस्य पुण्डरीको बभूव च ।।२६०।। फाले बिहरमाणस्थानन्तस्यात्राजितन्धरः । धर्मनाथस्य कालेऽभूज्जितनाभिसमाह्वयः ॥२६१॥ शान्तेः प्रवर्तमानस्य काले पोठाभियोऽभवत् । सात्यकीतनयो जातः काले वीरस्य सम्प्रति ।।२६२॥ अर्थ :-पुष्पदन्त जिनेन्द्र के काल में जितारि रुद्र, शीतलनाथ के काल में विश्वानल, श्रेयांस नाथ के काल में सुप्रतिष्ट नाम के रुद्र हुए हैं ॥२५८-२५६।। वासुपूज्य भगवान् के काल में प्रचल रुद्र, विमलनाथ के काल में पुण्डरीक, अनन्तनाथ के काल में अजितन्धर, धर्मनाथ के काल में जितनाभि, शान्तिनाथ के काल में पोठ रुद्र और वीर प्रभु के काल में सात्विको तनय नामक रुद्र उत्पन्न हुए हैं ।।२६०-२६२॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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