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________________ ३०४ ] सिद्धान्तसार दीपक प्रय उन रुत्रों द्वारा प्राप्त नरकों को एवं नरकगति को प्राप्ति के मूल कारणों का वर्णन करते हैं : रखा रौद्राशया एते दीक्षापतितसूनवः । विद्यानुबाबपाठेन प्राप्त विद्याश्चलात्मकाः ।।२६३॥ विषयासक्तदुर्बु बघा त्यक्तदृरज्ञानसंयमाः । दीक्षाभङ्गमहापापर्ययुः श्वभ यथोचितम् ॥२६४।। हौ भीमबलिसंज्ञौ च नरक सप्तमं गतौ । दीक्षाभङ्गाज्जितारिश्च रुद्रो विश्वानलाख्यकः ॥२६५।। सुप्रतिष्ठोऽचलः पुण्डरीको रुद्रा इमेऽखिलाः । पञ्च पवन ययुः षष्ठं रत्नत्रयतपोस्थयात् ।।२६६॥ रुद्रोऽजितन्धराभिस्यो जगाम पञ्चमी क्षितिम् । गौश्वभ्रं चतुर्थं जितनाभिपीठसंज्ञको ।।२६७।। सात्विकीतनयः प्राप्तस्तृतीयां पृथिवीमहो । एते तपस्विनो दृष्टिज्ञानसंयमभूषिताः ॥२६८।। दीक्षाभङ्गाजपापौधयधगुश्चेदृशीं गतिम् । ततो मन्येऽहमति दीक्षाभङ्गसमं महत् ॥२६॥ न भूतं भुवने पापं नास्ति नाग्रे भविष्यति । अपमानं च निन्धत्वं निर्लज्जवं जगत्रये ॥२७०।। मत्वेति धोधनः सारं वृत्तरत्नं सुदुर्लभम् । स्वप्नेऽपि नात्र नेसव्यं मलपाश्र्वेऽतिनिर्मलम् ॥२७१॥ अमीषां सर्वरुद्राणां भवः कतिपयैः स्फुटम् । लब्धसम्यक्त्वमाहात्म्यानिर्वाणं भविता व्रतैः ॥२७२।। अर्थाः-रोद्र परिणामी ये सभी रुद्र जैनेन्द्री दीक्षा को नष्ट कर देने वाले मुनि प्रायिकानों के पुत्र हैं। ये सभी दैगम्बरी दीक्षा धारण करके विद्यानुबाद नामक दशर्के पूर्व को पढ़ते हैं, उससे इन्हें विद्याओं की प्रानि होती है, उससे इनकी प्रात्मा चलायमान हो जाती है, और विषयों में प्रासक्त दुर्बुद्धि से अपने ग्रहण किये हुए दर्शन, ज्ञान और संयम को छोड़कर दीक्षाभङ्ग के महान् पाप से यथोचित् नरकों को प्रात करते हैं ।।२६३-२६४॥ दीक्षा भङ्ग के पाप से भीम और बलि ये दो रुद्र सप्तम नरक को प्राप्त हुए हैं । जितारि, विश्वानल, सुप्रतिष्ठ, अचल और पुण्डरीक ये पांच रुद्र रत्नत्रय एवं तपके
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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