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________________ नवमोऽधिकारः [ २९५ ue पाँच श्लोकों द्वारा चक्रवतियों के वर्तना काल का कथन करते हैं !-- काले प्रवर्तमानेऽभूद् भरतो वृषभस्य च । सगरोऽजितनाथस्य वर्तमानस्य सम्प्रति ।। १६२ ।। सञ्जातौ मघवाभिख्यसनत्कुमारचक्रिणौ । जिनान्तरेऽश धर्मस्य चक्रिणः स्युजिनास्त्रयः ॥ १६३॥ सुभीमचक्रभृज्जातोऽत्रारनाथ जिनान्तरे । महापद्मसमुत्पन्नो मल्लिनाथजिनान्तरे ।। १६४ ।। चक्रेशो हरिषेणो मुनिसुव्रत जिनान्तरे । प्रभूचक्री जयाख्यश्च नमिनाथजनान्तरे ॥ १६५ ॥ ब्रह्मदत्तायो जातो नेमीशस्य जिनान्तरे । इति चक्राबिया जाता जिनकाले जिनान्तरे ।।१६६ ।। अर्थ :- वृषभनाथ तोर्थंकर के काल में भरत चक्रवर्ती और जितनाय के काल में सगर चक्रवर्ती हुए थे || १६२ || मघवा और सनत्कुमार ये दो चक्रवर्ती धर्मनाथ और शान्तिनाथ के अन्तराल में, शान्ति, कुन्यु और भर नाथ ये तीन चक्रबर्ती स्वयं जिन थे ।। १६३ ।। सुभमची अरनाथ और मल्लिनाथ के अन्तराल में, महापद्म चक्रवर्ती मल्लिनाथ और मुनिसुव्रत के ग्रन्तराल में हरिषेण चक्रवर्ती मुनिसुव्रत और नमिनाथ के अन्तराल में उत्पन्न हुए थे। जय चक्की नमि और नेमिनाथ के अन्तराल में तथा ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती नेमिनाथ और पार्श्वनाथ के अन्तराल में उत्पन्न हुए थे, इस प्रकार बारह चक्रवनियों में से कोई तो जिनेन्द्र के काल में और कोई अन्तराल में उत्पन्न हुए थे ।।१६४-१६६।। श्रव चक्रवतियों को गति विशेष कहते हैं :-- सुभौमब्रह्मदत्ताख्यो बह्वारम्भपरिग्रहैः । जात पापविना धर्मं सप्तमं नरकं गतौ ।। १६७।। चक्रेशौ मघवाभिख्यसनत्कुमारसंज्ञकौ । सनत्कुमारकल्पं च जग्मतु तपुण्यतः ।। १६८ ।। शेषाष्टचक्रण हत्वा तपो ध्यानासिना बलात् । कृत्स्नकर्मरिपून् जग्मुर्मोक्षं रत्नत्रयाङ्किताः ॥ १६६ ॥ अर्थ:-सुभीम और ब्रह्मदत्त ये दो चक्रवर्ती बहुत प्रारम्भ और बहुत परिग्रह से उपार्जित पान के कारण धर्म भावना से रहित होते हुए सप्तम नरक में गये हैं ।। १६७॥ मधवा और सनत्कुमार नाम
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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