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________________ २६४ ] सिद्धान्तसार दीपक प्ररस्य वपुरुत्सेधो भवेत् त्रिशद्धनुः प्रमः । श्राघुश्चतुरशीतिश्चाब्दसहस्राण्यखण्डितम् || १६६ ॥ सुभमस्यच्छ्रितिश्चापान्यष्टाविंशतिरेव च । श्रायुः षष्टिसहस्राणि वर्षाणां खण्डवजितम् ॥ १८७॥ महापद्मस्य चोत्सेधो द्वाविंशतिधनुः प्रमः । श्रायुस्त्रिशत्सहस्राणि वत्सराणां परं ततः ।। १८६ ॥ प्रोन्नतिहरिषेणस्य चापविशतिसम्मिता । प्रायुर्दशसहस्राणि वर्षाणां चक्रवर्तिनः ।। १८६ | जयस्य वपुरुत्तुङ्गो धनुः पञ्चदशप्रमः । प्रायः सम्वत्सराणां च त्रिसहस्राणि चक्रिणः || १९०३ ॥ उत्सेधो ब्रह्मदत्तस्य वापस प्तप्रमाणकः । प्रायः सप्तशतान्येव वर्षाणां रत्नभोगिनः ॥ १११ ॥ अर्थ :- चतुर्थकाल में (१) भरत. (२) सगर, (३) मघवान्, (४) सनत्कुमार, (५) शांतिजिन, (६) कुन्थुजिन, (७) श्ररजिन, (८) सुभौम, (६) महापद्म, (१०) हरिषेण, (११) जय और अन्तिम (१२) ब्रह्मदत्त ये बारह चक्रवर्ती हुए हैं। इन सर्व चक्रबतियों के शरीर की आभा स्वर्ण वर्ण के स ॥ १७६ - १७६ ॥ भरत चक्रवर्ती के शरीर का उत्तेध ५०० धनुष और प्रायु ८४००००० पूर्व की थी ।। १८०॥ सगर चक्रवर्ती का उत्सेध ४५० धनुष और प्रायु ७२००००० पूर्व की थी ।।१८ १॥ मघवा का उत्सेध ४२३ धनुष और आयु ५००००० वर्ष को थी ।। १८२ ॥ सनत्कुमार चक्रवर्ती का उत्सेध ४१३ धनुष और श्रायु ३००००० वर्ष की थी ।। १८३ || शान्तिनाथ का उत्सेध ४० धनुष और आयु १००००० वर्ष की थी, ये चक्रवर्ती, तीर्थंकर और कामदेव इन तीन पदों के धारी थे ।। १६४॥ कुन्थुनाथ का उत्सेध ३५ धनुष और आयु २५००० वर्षं प्रमाण थो ( आप भी तोन पद धारी थे ) || १८५|| अरनाथ का उत्सेध ३० धनुष और प्रायु ८४००० वर्ष की थी ।। १८६॥ सुभीम चक्रवर्ती का उत्सेध २८ धनुष और प्रायु ६०००० वर्ष प्रमाण थी || १८७।। महापद्म का उत्सेध २२ धनुष और प्रायु ३०००० वर्ष की थी ॥ १६८ ॥ हरिषेण का उत्सेच २० धनुष और आयु १०००० वर्ष की थी ॥ १८६॥ जय चक्रवर्ती का उत्सेध १५ धनुष और आयु ३००० वर्ष प्रमाण थी ।। १६० ।। अन्तिम चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त का उत्सेध ७ धनुष प्रमाण और प्रायु ७०० वर्ष प्रमाण थी, ये सभी चौदह रत्नों के भोक्ता हुये हैं ||११||
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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