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________________ नवमोऽधिकार। [२८७ प्रभा के सदृश श्वेत, पद्मप्रभ और वासुपूज्य भगवान् के शरीर की प्राभा पद्मरागमणि की आभा के सदृश लाल, सुपार्श्वनाथ और पार्श्वनाथ तीर्थंकरों की कान्ति मरकत मरिण की कान्ति सदृश हरित, नेमिनाथ और मुनिसुव्रतनाथ के शरीर को अति श्याम तथा अन्य अवशेष सोलह सीकरों के शरीर की कान्ति कनकप्रभाके सदृश थी ।।१४४-१४५।। ____ मुनिसुव्रतनाथ और नेमिनाथ हरिवंश के शिरोमणि थे । शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथ कुरुवंश के विभूषण थे, पार्श्वनाथ उग्नवंश के अग्रणी थे, बोरनाथ नाथवंश के एवं अन्य शेष सत्रह जिनेश्वर इक्ष्वाकुवंश के आभूषण थे । अर्थात् इन-इन वंशों में उत्पन्न हुए थे ।।१४६-१४७॥ प्रथम तीर्थकर आदिनाथ भगवान् के शरीर को ऊंचाई ५०० धनुष प्रमाण थी, द्वितीयादि पाठ तीर्थंकरों को ५०-५० धनुष कम अर्थात् ४५०, ४००, ३५०, ३०.. २५०, २००, १५० और १०० धनुष थी। दशवे आदि पांच तीीकरों की १०-१० धनुष कम अर्थात् ६०, ८०, ७०, ६० और ५० धनुष थी। पन्द्रहवें आदि पाठ तीर्थंकरों की क्रमशः ५-५ धनुष कम अर्थात् ४५, ४०, ३५, ३०, २५, २०, १५ और १० धनुष थी। पार्श्वनाथ भगवान् की हाथ और वीर नाथ भगवान की ७ हाथ प्रमाण ऊँचाई थी, इस प्रकार चौबीस तीर्थीकरों के दिव्य शरीरों का उत्सेष था ॥१४८.१४६।।। चौबीस तीर्थीकरों में से प्रथम तीर्थंकर की प्राय चौरासी लाख पूर्व, द्वितीय की बहत्तर लाख पूर्व और तृतीय को साठ लाल पूर्व थी। इसके प्रागे पांच-पांच ती करों को क्रमश: १०-१० लाख पूर्व कम, पुष्पदन्त को दो लाख पूर्व और शीतलनाथ की एक लाख पूर्व की आयु थी। श्रेयांसनाथ की ८४ लाख वर्ष, वासुपूज्य की ७२ लाख वर्ष, विमलनाथ की ६० लाख वर्ष, अनन्तनाथ की ३० लाख वर्ष, धर्मनाथ को १० लाख वर्ष, शान्तिनाथ की एक लाख वर्ष, कुन्थुनाथ की ६५ हजार वर्ष, अरनाथ की ८४ हजार वर्ष मल्लिनाथ की ५५ हजार वर्ष, मुनिसुव्रतनाथ की ३० हजार वर्ष, नमिनाथ को १० हजार वर्ष, नेमिनाथ को एक हजार वर्ष, पार्श्वनाथ की १०० वर्ष और वर्धमान स्वामी की ७२ वर्ष प्रमाण प्राय थो ।।१५०-१५४।। प्रथ कायायषोः सखबोधाय विस्तारमाह :--- वृषभस्याङ्गोत्सेधःपञ्चशतधनुषि । प्रायुश्चतुरशीति लक्षपूर्वाणि । अजितस्योन्नतिः सार्धचतुःशतचापानि । प्रायुसिम तिर्नक्षपूर्वाणि । सम्भवस्योत्सेधः चतुःशतधनूषि, प्रायुः षष्टिलक्षपूर्वारिंग। अभिनन्दनस्यातितिः सार्वत्रिशतचापानि, प्राय: पञ्चाशल्लक्षपूर्वारिंग । सुमतेस्नतिः विशतधनू पि, प्रायुश्चत्वारिशल्लक्ष पूर्वाणि । पानभस्योत्सेधः साबंद्विशतचापानि, प्रायस्त्रिशल्लक्षपूर्वाणि । सुपार्श्वस्योन्नतिद्विशतधनुषि, प्रायुविशतिलक्षपूर्वाणि। चन्द्रप्रभस्योत्सेघः सार्धशतचापानि, अयुद्द शलक्षपूर्याणि । पुष्पदन्तस्योन्नतिः शतधनू षि, प्रायद्धिलक्षपूर्वारिण। शीतलोत्सेधः नवतिचापानि, प्रायु रेकलक्षपूर्वाणि । श्रेयसः उन्नतिरशीतिधनू षि, प्रायुश्चतुरशीतिलक्षवर्षाणि । वासुपूज्योत्सेधः सप्ततिचापानि, आयुर्दासमतिलक्षवर्षाणि । विमलस्योत्सेधः षष्टिधनूषि, प्रायः षष्टिलक्षवर्षाणि । अनन्तस्यो. न्नतिः पञ्चाशच्चापानि, आयस्त्रिगल्ला वारिग । धर्मस्योत्सेधः पञ्चचत्वारिंशद्वन् षि, प्रायुर्दशलक्ष
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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