SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टमोऽधिकारः ततः प्राश्वर्णनोपेतः सुकच्छाविषयो भवेत् । द्विनदी विजयादुर्वैश्च षट्खण्डीकृत ऊर्जितः ॥ ११॥ तस्यार्यखण्डमध्येऽस्ति रम्या क्षेमपुरी पुरी । प्रागुक्तनगरीतुल्या व्यासाद्यैर्धर्ममातृका ।।१२।। अर्थः--- :--- इस प्रकार विदेह क्षेत्र स्थित सोलह वक्षार पर्वतों का समस्त वर्णन भी इस चित्रकूट क्षार पर्वत के सदृश ही जानना चाहिये ।। १० ।। पूर्व कथित कच्छादेश के वर्णन के समान ही सुकच्छा देश का वर्णन है । इस देश के भी रक्ता रक्तोदा और विजयार्ध पर्वत से वह खण्ड हुये हैं ||११|| इन वह खण्डों में से प्रायं खण्ड के मध्य में व्यास आदि से क्षेमापुरी नगरी के समान प्रतिरम्य और धर्म की माता के सदृश क्षेमपुरी नाम की नगरी है || १२ | aa fवभङ्गा नदी का निर्गम स्थान, परिवार नदियाँ और लम्बाई प्रादि कहते ततो नीलाद्रिपार्श्वस्थ कुण्डस्य शाश्वतस्य च । निर्गत्य दक्षिणद्वारेण विभङ्गा नदी शुभा ॥ १३ ॥ अष्टाविंशसहस्राणां परिवारसरिद्युता । कुण्डहीनायता प्रातीसंज्ञोमिसंकुला ||१४|| [ २३६ अर्थः- इसके बाद नीलकुलाचल के पार्श्व भाग में एक शाश्वत कुण्ड स्थित है उस कुण्ड के दक्षिण द्वार से निकलकर ग्राहवती नाम वाली, प्रत्यन्त रमणीक विभङ्गा नदी अट्ठाईस हजार परिवार नदियोंसे युक्त होती हुई, कुण्ड व्याससे हीन प्रायतवाली अनेक उर्मियों से व्याप्त होकर बहती है ।। १३-१४।। विभङ्गा के अवशेष वर्णन का कथन करते हैं :-- रोहित्सरित्समव्यासा हेमसोपानशालिनी । तोरी नदीभिरलंकृता मनोहरा ||१५|| योजनः पञ्चविंशत्यग्रशतक प्रमाणकैः । विस्तीर्णान्ते हि सीतायाः प्रविष्टाभ्यन्तरे परा ।।१६।। तस्याः प्रवेशद्वारस्य पूर्वापरदीर्घता । पञ्चविशति संयुक्तशर्तक योजनानि च ।। १७ ।। तोरणस्योच्छ्रुतिः सार्धसप्ताशीत्यधिकं शतम् । योजनानां तथास्मिन्स्युजिनेन्द्र प्रतिमादयः ||१८ ॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy