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________________ २४० ] सिद्धान्तसार दोपक इत्येषा वर्णना सर्वा विभङ्गासरितां समा । सोताप्रवेश सद्धाराणां विशेया न चान्यथा ॥१९॥ अर्थ:-ग्राहवतो विभङ्गा नदी का व्यास रोहित् महानदी के सदृश है । स्वर्ण सोपानों से सुशो. भित, तोरणों, बनों एवं वेदियों से अलंकृत यह मनोज्ञ नदो अन्त में एक सौ पच्चीस (१२५) योजन विस् तीर्ण होती हुई सीता महानदी के मध्य प्रवेश कर जाती है ।।१५-१६। इस नदी को सीता प्रवेश द्वार की पूर्व-पश्चिम दीर्घता एक सौ पच्चीस योजन है, तथा जिस पर जिनेन्द्र प्रादि प्रतिमाएँ अवस्थित हैं ऐसे तोरण की ऊँचाई एक सौ साले सतासी (१८७३) योजन प्रमाण है ॥१५-१८।। इस प्रकार का यह सब वर्णन सर्व विगङ्गः नदियों का मोर सीजा गोश द्वारों का सदृश हो जानना चाहिये । अन्यथा नहीं ।।१९।। अब महाकच्छ देश की अवस्थिति और उसके मध्य स्थित अरिष्टानगरी का संक्षिप्त कथन करते हैं: नद्याः पूर्व महाकच्छाविषयः प्राक्तनोपमः । धर्मशर्माकरीभूतः स्यात् षट्खण्डघरातिः ॥२०॥ तस्य मध्ये परारिष्टानगरी विद्यते शुभा । जिन जैनालयस्तुङ्ग भूषिता धर्मकर्मभिः ॥२१॥ अर्थ:-- ग्राह्वती नदी की पूर्व दिशा में पूर्वोक्त (कच्छा देश सद्दश) उपमानों से युक्त महाकच्छ नाम का देश है । जो धर्म और सुख की खान, तथा छह खण्ड पृथिवियों से समन्वित है ।।२०।। उस देश के मध्य में एक अत्यन्त शुभ और श्रेष्ठ अरिष्टा नाम की नगरी है, जो जैन धर्मावलम्बियों के प्रासादों, उन्नत जिन चैत्यालयों एवं धर्म-कर्म से विभूषित है ।।२१।। प्रम पद्मकूट वक्षार पर्वत की अवस्थिति आदि कहते हैं :-- ततोस्ति पद्मकूटाख्यो वक्षारपर्वतो महान् । सिद्धकूटं महाकच्छाह्वयं कूटं ततः परम् ॥२२॥ कूटं च कच्छकावत्याल्यं पनकूटसंज्ञकम् । एतेश्चतुर्महाकूटः शिखरेऽलंकृतोऽस्ति सः ॥२३॥ अर्थ:--महा कच्छ देश के भागे पद्मफूट नाम का एक महान वक्षार पर्वत है । सिद्धक्ट, महाकच्छ कूट, कच्छकावतो कूट और पद्यकूट' इन चार महा कुटों के द्वारा उसका शिखर अलंकृत है २२-२३॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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