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________________ २३८ ] सिद्धान्तसार दीपक अब वक्षारपर्वतस्थ कूटों के नाम, स्थान एवं स्वामी प्रादि कहते हैं : सिद्धकूटं च कन्छाख्यं सुकच्छासंज्ञकं ततः । चित्रकूटाह्वयं कूटं चतुःकूटान्यमूनि वै ॥६॥ वक्षारोच्चचतुर्थाशतुङ्गानि स्युः शुमान्यपि । अहंस्सुरालयायानि सोतासमीपतः क्रमात् ।।७।। वियोपकरणः पूर्णः सिद्धकूटे जिनालयः । टोलाइ यन्तति मे ते दिवमन्याः सन्ति धामसु ।।८।। मध्यकूटद्वयस्थोचचरत्नवेश्मसु पुण्यतः । वसतः स्वस्वकटोत्थ नामानौ व्यन्तरामरौ ।।६।। अर्थ :--चित्रकूट नामक प्रथम वक्षार पर्वत पर सिद्ध कूट, कच्छाकूट, सुकच्छाकूट और चित्रकूट नाम के चार कूट हैं ॥६॥ इन शुभ क्रूटों की ऊँचाई क्षार पर्वत की ऊंचाई के चतुर्थ भाग प्रमाण है । अर्थात् सीता महानदी के समीप स्थित सिद्ध कूट की ऊँचाई ( "१° = ) १२५ योजन और नील पर्वत के समीप चित्रकूट को ऊँचाई (°)=१०० योजन प्रमाण है, शेष दो कूटों की क्रमशः हानिवृद्धि को लिये हुये है । सीता के समीप से क्रमशः अर्हन्त भगवान और देवों से युक्त काट हैं । सिद्धकूट के ऊपर दिव्य उपकरणों से परिपूर्ण जिन चैत्यालय है, और नील पर्वत के समीप अन्तिम चित्रकूट पर अनेक प्रासाद हैं, जिनमें दिक्कुमारियां निवास करती हैं ॥७-८॥ मध्य में स्थित शेष दो कूटों में रत्ल के प्रासाद हैं जिनमें पुण्योदय से अपने अपने कुटों के सदृश हो नाम वाले व्यन्तर देव निवास करते हैं ॥६॥ प्रब कूटों का उत्सेथ पृथक्-पृथक् कहते हैं :-- कुल गिरि निकटस्थे प्रथमे कूटे उत्सेधः शतयोजनानि । द्वितीये च तृतीय भागाधिकाष्टोत्तरशतयोजनानि । तृतीये षोडशाग्रगतयोजनानि योजनविभागानां द्वौ भागौ । चतुर्थे कूटे उन्नति. पञ्चविशत्यधिक शतयोजनानि । अर्थ:- नील कुलाबल के समीप स्थित प्रथम कूट की ऊंचाई १०० योजन, द्वितीय कूट को १०५१ पोजन, तृतीय लूट की ११६३ योजन और चतुर्थ कूट की ऊँचाई १२५ योजन प्रमाण है ।। अब शेष वक्षार पर्वतों, सुफच्छा देश और क्षेमपुरी का कथन करते हैं :-- इत्थं सवरांना शेया विदेहे सफलेखिला । षोडशप्रमवक्षाराणां सर्वेषां समानका ॥१०॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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