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________________ सप्तमोऽधिकारः [ २३३ मणिरत्नं तमोहन्तृ चूडामभिधानकम् । जितं काकिणीरत्नं चिन्तामणि समाह्वयम् ॥२७३॥ सेनापतिरयोध्यात्यो नररत्नं भवेत्प्रभोः । पुरोधाः पुरुधोर्दक्षो बुद्धिसागरनामकः ॥२७४॥ वास्तुविद्याप्रवीणः स्थपति भंद्रमुखोऽभुतः । श्रीमान् गहपतिः कामवृष्टिनामास्त्यभीष्टदः ।।२७५।। व्ययोपचयचिन्तायां नियुक्तश्चक्रवतिनः । यागहस्तीमहाकायोऽत्र्याभो विजयपर्वतः ॥२७६॥ पवनञ्जयसंशोऽश्वः सुभद्रास्त्री च्युतोपमा । इमानि दिव्यरत्नानि रक्षितानि सुरैविभोः ॥२७७।। राज्याङ्गभोगकर्तीणि पुण्यात्सन्ति चतुर्दश । तद्गृहेऽपररस्नानां संख्या को वेत्ति बुद्धिमान् ॥२७॥ प्रानन्दिन्योऽब्धिनि?षाभेर्यो द्वादशसम्मिताः । विषड्योजनपर्यन्तं ध्वनन्त्यापूर्यदिग्मुखम् ॥२७॥ प्रभोविजयघोषाख्याः पटहा द्वादशप्रमाः । चतुर्विशति शङ्खाः स्यर्गम्भीरावर्तसंज्ञकाः ॥२०॥ अर्थ:-चक्रवर्ती के पास शत्रुनों को नाश करने वाली वजमय बज तुण्डा नाम की शक्ति, सिंहाटक नाम का कुन्तल और सिंह नखों के सहा प्रकार से अंत्रित रत्नदण्ड होता है ॥२६॥ महा दौति से युक्त लोहवाहिनी नाम का खड्ग, मनोवेग नाम की करधौनी और सौनन्द नाम की तलवार होतो है ।।२७०]। भूतमुख से सहित अपने नाम को सार्थक करने वाली पृथुभूतमुख नाम की ढाल और षट्खण्डों पर आक्रमण करने में समर्थ ऐसा सुदर्शन नाम का चक होता है ॥२७१॥ दोनों गुफा द्वारों को भेदने में समर्थ चण्डवेग नाम का दण्ड और जल के द्वारा अभेद्य बजमय नाम का महान चर्मरत्न होता है ॥२७२।। अन्धकार को नाश करने वाला चूडामरिण नाम का मणिरत्न और महाप्रकाशवान् चिन्तामरिण नाम का काकिणी रत्न होता है ।।२७३।। चक्रवर्ती के अयोध्यसेन नाम का सेनापति नररत्न और विशाल बुद्धि का धारक तथा अतिदक्ष बुद्धिसागर नाम का पुरोहित होता है ॥२७४।। प्रावास विद्या अर्थात् निवास स्थानों का निर्माण करने में प्रवीण भद्रमुख नाम का अद्भुत स्थपति (सिलावट)
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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