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________________ २३० ] सिद्धान्तसार दोपक रत्नाभरण आदि देती है। मानव निधि समस्त प्रकार के प्रायुध और नीति शास्त्र देती है । प्रदक्षिणाबतं शंख निधि महान स्वर्ण और सर्वरत्न नाम की । वी निधि समस्त प्रकार के रत्न चक्रवर्ती को देती हैं । अद्भुत पुण्य से उत्पन्न होने वाली ये नौ निधियाँ शकटाकार होती हैं ॥२४०-२४७।। चार खूटियों ( चक्रधारा) एक आठ पहियों से संयोजित ये कल्याण प्रद नौ निधियाँ पृथक्-पृथक् पाठ योजन ऊँची, नौ योजन चौड़ी, बारह योजन सम्बी और एक-एक हार देशों से रक्षित हैं. :गा पुण्य के भंडार स्वरूप चक्रवर्ती को नित्य ही स्व इच्छित पदार्थ देती हैं, ऐसा जानना चाहिये ।।२४८-२४६॥ अब चक्रवर्ती के चौदह रत्नों के नाम और उनके उत्पत्ति स्थानों को कहते हैं : चक्र छत्रमसिदण्डो मरिणश्च चर्मकाकिणी । इमानि सप्तरत्नान्यजीवानि साधनाम्यपि ।।२५०।। सेनागृहपतीभावस्थपतिस्त्रीपुरोधसः । सप्तरत्नानि चैतानि सजीवानि महान्ति वै ॥२५१॥ चकच्छवासिदण्डाश्च जायन्तेऽस्यायुधालये । काकिणीमणिचर्माणि पुण्येन श्रीगृहान्तरे ।।२५२।। स्त्रीगजाश्वाः त्रिरत्नान्युत्पद्यन्ते रजताचले। चत्वारिशेषरत्नानि क्षेमापुर्या महान्ति च ।।२५३॥ सरत्नानिधयो नार्यः संन्यं शय्यासने पुरी। भोज्यं सभाजनं नाट वाहनं हीति चक्रभत् ॥२५४॥ दशाङ्गमोगसाराणि भुनक्ति पुण्यपाकतः । गणबद्धामराभृत्याः सहस्रषोडशास्य च ।।२५५१५ अर्थः- चक्रवर्ती के महापुण्य योग से चक्र, छत्र, तलवार, दण्ड, मरिण, चर्म रत्न और काकणी ये सात अजीव रत्न अनेक कार्यों को साधने वाले होते हैं। तथा सेनापति, गृहपति, हाथो, अश्व, स्थपति, स्त्री और पुरोहित ये सात सजीव रत्न हैं ॥२५०-२५१।। चक्र, छत्र, असि और दण्ड ये चार रत्न चक्रवर्ती की प्रायुधशाला में उत्पन्न होते हैं । काकणी, मणि और चर्म रत्न ये तोन रत्न श्रीगृह अर्थात् चक्री के म्नजाने में तथा स्त्री, हाथी एवं अश्व ये तीन रत्न विजयार्थ पर्वत पर उत्पन्न होते हैं शेष चार रत्न अर्थात् सेनापति, गृहपति, स्थपति और पुरोहित ये महान् चार रत्न क्षेमापुरी में ही उत्पन्न होते हैं ॥२५२-२५३।। चक्रवर्ती १ चौदह रत्नों सहित नौ निधियाँ, २ स्त्री, ३ सेना, ४ शय्या, ५ प्रासन, ६ पुरी, ७ भोजन, ८ भाजन, ६ नाटक और १० वाहन ये दश प्रकार के सारभूत भोगों को भोगता है । महा पुण्योदय से सोलह हजार गणवद्ध देव भृत्यों के सदृश सेवा करते हैं ॥२५४-२५शा
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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