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षष्ठोऽधिकार :
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अर्थ:--त्रिभुवनपनि अर्थात् शतेन्द्र पूज्य प्रहन्त परमेष्ठियों को, त्रैलोक्य शिखर पर स्थित सिद्धपरमेष्ठियों को, पञ्चाचार पालन में दक्ष ऐसे मुनिसमूह के अधिपति प्राचार्य परमेष्ठियों को और अनुपम गुणों के समुद्र समस्त उपाध्याय एवं साधु परमेष्ठियों को मैं उनके गुणों को प्राप्ति के लिये नमस्कार करता हूँ॥११०॥
इसप्रकार भट्टारक सकल कीति विरचित सिद्धान्तसार दीपक नाम महाग्रन्थ में सुदर्शनमेरु, भद्रशाल वन एव जिनचैलवालयों का वर्णन करने वाला
छठवाँ अधिकार ।। समाप्त ।।