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________________ १८८ ] सिद्धान्तसार दीपक अर्थ:-भवनवासी, व्यन्तरवासी और ज्योतिष्क देवों के विमानों अर्थात् भवनों में जो चैत्यालय हैं, उनका प्रमाण जम्बूवृक्ष स्थित चैत्यालयों के प्रमाण सदृश हो है ॥१०४॥ अन्य वन, प्रासाद और नगर आदि में स्थित देवों के आवास सम्बन्धी जिनालय बहुत और नाना प्रकार के हैं ! इनका प्रायाम, विस्तार एवं उत्सेध आदि भी जिनागम में अनेक प्रकार का कहा है, जो विद्वानों के द्वारा जानने योग्य है। तीन लोक में सर्वत्र जितने भी अकृत्रिम जिन मन्दिर हैं ।।१०५-१०६।। उन समस्त जिनालयों में भृङ्गार, कलश, दर्पण, वीजना, ध्वजा, चामर, ठोना और छत्र ये अष्ट द्रव्य रूप सम्पदा पृथक्-पृथक् एक सौ पाठ-एक सौ पाठ प्रमाण होते हैं। अर्थात् एक एक जाति के उपकरण एक सौ पाठ-एक सौ पाठ (१०८४५-८६४) होते हैं ।। १०७-१०८।। अब लोकस्थ समस्त प्रकृत्रिम चैत्यालयों (प्राचार्य) नमस्कार करते हैं:-- ये त्रैलोक्ये स्थिताः श्रीजिनवरनिलया मेरनन्दीश्वरेषु, चेष्वाकारेभदन्तेषु वरकुलनगेष्वेवरूप्याचलेषु । मान्वादोषोत्तरे कुण्डलगिरिरुचकेजम्यक्षतरेषु, वक्षारेष्वेव सर्वेष्वपि शिवगतये स्तौमि तांस्तज्जिनार्चाः ।।१०।। अर्थ:-जो तीन लोक में स्थित अर्थात् विमानवासी, भवनवासी, व्यन्तरवासी एवां ज्योतिष्क देवों के स्थानों पर स्थित तथा परचमेरु सम्बन्धी-भद्रशाल ग्रादि वनों के ८०, चार इवाकारों के ४, बीस गजदन्तों के २०, तोस कुलाचल पर्वतों के ३०, एक सौ सत्तर विजया पर्वालों के १७०, एक मानुषोत्तर के ४, दश जम्बू एवं शाल्मलि वृक्षों के दश तथा अस्सी वक्षार पर्वतों के ८०, नरलोक सम्बन्धी और नन्दीश्वर द्वीप के ५२, कुण्डलगिरि के ४ और रुचकगिरि के ४, इसप्रकार मध्यलोक सम्बन्धी ४५८ जिनालय एवं उनमें स्थित जिन प्रतिमाएँ हैं उन सबकी मैं मोक्ष प्राप्ति के लिये स्तुति करता हूँ ॥१०॥ अधिकारान्त मङ्गलाचरणः-- त्रिभुवनपतिपूज्यास्तीर्थनाथांश्च सिद्धान्, त्रिभुवनशिखरस्थान पञ्चधाचारदक्षान् । मुनिगणपतिसूरीन पाठकान् विश्वसाधून, ह्यसमगुणसमुद्रान्नौम्यहं सद्गुणाप्त्यै ॥११०॥ इतिश्री सिद्धान्तसारबीपकम् ग्रन्थे भट्टारकश्रीसकलकोतिविरचिते सुदर्शनमेरु भवशालयनजिनचैत्यालयवर्णनोनाम षष्ठोऽधिकारः ।।
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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