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पञ्चमोऽधिकारः
अधिकारान्त मङ्गलाचरणः
सर्वज्ञान श्रीगणेशान् श्रुतसकलकृतः संयतान्विश्ववन्द्यान्,
पञ्चाचारादि भूषांस्त्रिभुवन महितान् पाठकान् ज्ञातविश्यात् । प्राप्तान्सर्वांगपारं त्रिकसमयसूयोगप्रदीप्तादि सर्वेः,
सारैर्युक्तांस्तपोभिस्त व समगुरपसिद्धषं च साधून् नमामि ॥ १४० ॥ इति सिद्धान्तसारदीपक महाग्रन्थे भट्टारक श्रीसकल कीर्ति विरखिते चतुर्दशमहानदी, विजयार्थ, वृषभाद्रि नाभिगिरि वर्णनोनाम पञ्चमोऽधिकारः ॥ ५ ॥
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अर्थः- विश्ववन्दनीय सर्व अरहन्तों को, द्वादशांग की रचना करने वाले मरणधरदेवों को, संयम एवं पञ्चाचार से विभूषित जगत् पुज्य प्राचार्यों को, द्वादशांग के पार पहुँच कर प्राप्त किया है समस्त तत्त्वों का ज्ञान जिन्होंने ऐसे उपाध्यायों को तथा तीनों समयों ( ऋतुनों) में उत्तम प्रतापन पादि योगों एवं उम्र और दीप्त आदि सारभूत सर्व तपों को धारण करने वाले साधु परमेष्ठियों को मैं उन अनुपम गुणों की सिद्धि के लिये नमस्कार करता हूँ || १४० ॥
इस प्रकार भट्टारक सकलकोति विरचित सिद्धान्तसार दीपक नाम महाग्रन्थ में चौदह महानदियों, विजयाधों, वृषभाचलों और नाभि गिरि
पर्वतों का वर्णन करने वाला पांचवां
|| अधिकार समाप्त ॥