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________________ १२४ ] सिद्धान्तसार दोपक दो दो योजन ही अवशेष रहते हैं, इसीलिये उम्नगा और निम्नगा नदियों की लम्बाई दो दो योजन कही गई है। __ गङ्गा के पतन का और पतन समय उसके व्यास ग्रादि का वर्णन: ततस्त्यक्त्वादिमागस्य दक्षिणानिमुखा सरित् । दक्षिणभरतस्या भूतलं प्रारमुखी ततः ॥३७॥ वलित्वा विस्तता साद्विषष्टियोजनःपरा। पञ्चक्रोशावगाहा सा प्रविष्टा पूर्वसागरम् ।।३।। अर्थः--इस प्रकार विजयाध पर्वत को छोड़ कर दक्षिणाभिमुख बहती हुई गंगा दक्षिण भारत के अर्धभाग (११६ योजन) पर्यन्त सोधो पातो है । पश्चात् पूर्व दिशा के सम्मुख मुड़ती हुई, ६२१ योजन चौड़ी और ५ कोस गहरी वह गंगा महानदो अन्ततः ( मागध द्वार से ) पूर्व समुद्र में प्रवेश कर जाती है ॥३७-३८॥ विशेषार्थ:- ११९३५ योजन अर्थात् अर्धदक्षिण भारत को पार करती हुई गंगा जब पूर्वाभिमुख होती है तब वह ढाई म्लेच्छ खण्डों को प्राप्त करतो है और वहां से १४००० प्रमाण परिवार नदियों को लेकर लवण समुद्र में प्रवेश कर जाती है । इससे यह सिद्ध होता है कि प्रकृत्रिम वस्तुओं की अवस्थिति म्नेच्छ खण्ड पर्यन्त ही प्राप्त हो सकती है आर्य खण्ड में नहीं क्योंकि प्रापंखण्डों में प्रलय पड़ता है। अब मागधद्वार के व्यास आदि का वर्णन करते हैं : तन्मागधामरद्वारं गङ्गाप्रवेश कारणम् । क्रोशयावगाहं द्विकोशबाहुल्य संयुतम् ॥३६॥ गङ्गान्याससमन्यासं रलतोरण मूषितम् । योजन त्रिनयत्यामा त्रिकोशेनोछुितं भवेत् ॥४०॥ अर्थः-पूर्व लवण समुद्र में गङ्गा के प्रवेश का कारणभूत मागघ नामका द्वार है । अर्थात् मागधद्वार से भीतर जाकर गंगा समुद्र में प्रवेश करती है । इस द्वार के रक्षक देव का नाम मागध है। यह द्वार रत्नों के तोरण से विभूषित है द्वार को नींव दो कोस, मोटाई दो कोस, ऊचाई तीन कोस अधिक ६३ योजन और चौड़ाई गङ्गा के व्यास सदृश अर्थात् ६२३ योजन. प्रमाण है ॥३९-४०॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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