SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्चमोऽधिकार [ १२३ उन्नतिर्योजनान्यष्टौ द्वौ स्तो बञकपाटको । षट्पडयोजनविस्तारौ ह्यष्टाष्टयोजनोन्नती ॥३३॥ बेहल्या विजयार्धस्य प्रविष्टषाप्यधस्तले । प्रष्टयोजनविस्तीर्णा सर्वत्रात्र गुहान्तरे ॥३४॥ अर्थः-गंगा नदी का मत के गोरश सहित भिरमार से निकालकर [ दक्षिण को ओर बहती हुई विजयापर्वत की ] खण्डप्रपात नाम की गुफा की ओर जातो है और गुफा के तोरण सहित (दक्षिण) द्वार की देहली के नीचे से निकलकर [ गुफा की ५० योजन लम्बाई को पार करती हुई ] अाठ योजन विस्तार वाली गंगा उसी गुफा के उत्तर द्वार की देहली के नीचे से निकल जातो है विजयापवंत के नीचे स्थित गुफा और गुफा द्वार दोनों बारह बारह योजन चौड़े और पाठ आठ योजन ऊँचे हैं । गुफा की लम्बाई ५० योजन है (क्योंकि विजया ५० यो० ही चौड़ा है) । गुफा के (दक्षिण उत्तर ) दोनों द्वारों पर प्रत्येक छह छह योजन चौड़े और पाठ आठ योजन ऊँचे वचमय काट लगे हैं ॥३१-३४॥ विशेषार्थ:-एक कपाट की चौड़ाई ६ योजन है. नतः दोनों कपाट १२ योजन चौड़े हये क्योंकि गुफा का द्वार भी १२ योजन चौड़ा है । जब कपाटों की चौड़ाई १२ योजन है तब देहली की लम्बाई भी १२ योजन होगी, अतः उसके नीचे से पाठ योजन चौड़ी गङ्गा का निकल जाना स्वाभाविक ही है। जम्नगा और निम्नगा नदियों का वर्णन:--- उम्नगानिम्नमा संने द्विद्वियोजन विस्तृते । द्विद्विर्योजन दोघे वे नौ विनिर्गते घने ॥३५।। पूर्वापरगुहाभित्ति भूकुण्ठाभ्यां क्षयोज्झिते । गुहामध्ये प्रविष्टे स्तःप्रवाहेस्याद्विपार्वयोः ॥३६।। अर्थ:--[ विजया को खण्डप्रपात गुफा ५० योजन लम्बी है । २५ योजन पर अर्थात् ] गुफा के ठीक मध्य में पूर्व पश्चिम दोनों दीवालों के निकट भूमि पर दो कुण्ड हैं इन कुण्डों से दो दो योजन चौड़ी और दो दो योजन सम्बो उम्नगा और निम्नगा नाम की दो नदियाँ निकलती हैं, तथा विनाश रहित और मेघसदृश ये दोनों नदियाँ दोनों पार्श्वभागों से गङ्गा के प्रवाह में प्रविष्ट हो जाती हैं ॥३५-३६।। विशेषार्थ:-मण्डप्रपात गुफा की चौड़ाई १२ योजन प्रमाण है । इस गुफा के ठीक मध्य में से ८ योजन चौड़ी गङ्गा बहती है, प्रतः दोनों पार्श्वभागों में गुफा को भित्ति से गङ्गा नदी तक मात्र
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy