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________________ पञ्चमोऽधिकार [ १२५ मागध द्वार के ऊपर स्थित तोरण द्वार का बर्णन करते हैं :-- स्युस्ततोरणाद्वारे जिनविम्बान्यनेकशः । मङ्गलदव्यभूषाणि दीप्तरत्नमयानि च ।।४१।। तोरणोपरिचीत्त ङ्गा मणिप्रासादपंक्तयः । दिक्कुमारीवजापूर्णा निस्याः सन्ति मनोहराः ॥४२॥ अर्थः-मागधद्वार के ऊपर जो तोरणद्वार है. उसके ऊपर दिक्कुमारियों के समूह से व्यास, मन को हरण करने वाले, अनादिनिधन, उत्तन और पंक्तिबद्ध मणिमय भवन हैं । और इन भवनों के ऊपर मङ्गल द्रव्यों से विभूषित, दं दीप्यमान रत्नमय अनेक जिनबिम्ब अवस्थित हैं ।।४१-४२॥ निर्गमद्वार आदि के व्यास का कथन :-- हृदस्य निर्गमद्वारं कुण्डस्य च महाम्बुधः । प्रवेशद्वारमस्त्येव व्यासेन समविस्तृतम् ॥४३॥ अर्थः- पद्मसरोबर गङ्गा के मिर्गम द्वार की चौड़ाई गङ्गा के निर्गम व्यास के सध्या अर्थात् ६३ योजन है। कुण्ड का व्यास और लवण समुद्र के गङ्गा प्रवेश द्वार का व्यास गङ्गा के प्रवेश व्यास के सदृश अर्थात् ६२३ योजन प्रमाण है ।।४३।। गङ्गाया द्वारविस्तारात्सर्वे ते द्वारतोरणाः । अर्धाषिकेन तव्यासेनोन्नता निखिला मताः ॥४४॥ हवकण्डसमुद्राणां निर्गमद्वारपंक्तिषु । प्रवेशद्वारसर्वेषु गंगाविसरितां भवेत् ॥४५॥ __ अर्थः -गंगा के समस्त तोरणद्वारों का जितना जितना विस्तार है, अपने अपने उन व्यासों (विस्तारों) का डेढ़ गुणा उन तोरण द्वारों की ऊँचाई है ॥४४॥ गंगा आदि सभी नदियों के तालाब, कुण्क: पोर समुद्र सम्बन्धी निर्गम द्वार व प्रवेश द्वार होते हैं ॥४५॥ तोरणद्वारों का विशेष वर्णन : क्रोशद्वयावगाहत्वं तोरणानि महान्ति च । तोरणेषु जिनेन्द्राणां प्रतिमा दिव्यमूर्तयः ।।४६॥ तोरणोपरिमागेषु विषकन्यावास पंक्तयः । भवन्ति शाश्वता रम्या विश्वेषु मरिणतेजसः ॥४७॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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