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________________ १०६ ] सिद्धान्तसार दीपक ततः शादिविस्तारो द्विगुणद्विगुणो मतः । वृद्धो हदद्वये ह्रासः क्रमाच्चान्यहदत्रिषु ।।४।। अर्थ:--पश्न सरोवर के मध्य में एक योजन विस्तार (चौड़ा) वाला, एक कोस की करिणका से युक्त, नवविकसित सुगन्धवान् और शाश्वत कमल है। इस कमल के एक पत्ते को लम्बाई १: कोस है ऐसे इसमें ११००० पत्तं शाश्वत होते हैं । कमल में कमल की नाल नीचे से ऊपर तक एक कोस मोटी है, और जल से दो कोस ( योजन) पर रहती है तथा वैडूर्य मरिण यों से निर्मित है । पद्म आदि सरोवरों का विस्तार पूर्व की अपेक्षा दूना दूना है, अतः कमल आदि का विस्तार ग्रादि भी तोन सरोवरों तक जिस क्रम से वृद्धिङ्गत होगा आगे के तीन सरोवरों में उसी क्रम से दुगुण हानि को प्राप्त होगा ।।८१-८४॥ ' : विशेष:-(१) पद्मद्रह की गहराई १० योजन (४० कोस) कही है, और यहाँ कमल नाल जल से २ कोस ऊपर है ऐसा कहा है। इससे यह सिद्ध होता है कि कमल नाल की कुल लम्बाई ४२ कोस (१०३ योजन) है। (२) कमल एवं कमलनाल प्रादि यद्यपि अकृत्रिम हैं और शाश्वत हैं किन्तु इनका माप मानवयोजन (लघु योजन) से ही जानना चाहिये और अन्य शाश्वत पदार्थों का माप प्रमाण (बड़े) योजन से जानना चाहिये। तदेवाहः--पग्रहृदे कमलस्य व्यासः एकयोजन, कणिका न्यासः एकः क्रोशः पत्रदीर्घता सार्धक्रोशः । महापद्म कमलस्य विस्तृति · योजने करिगका विस्तारः द्वौ कौशी पत्रायामस्त्रय क्रोशाः । तिगिन्छे केसरिरिण च पद्मस्य व्यासः चत्वारियोजनानि करिणका व्यासः योजमैकं स्यात् 1 पायामः सार्द्ध योजनं च । महापुण्डरीकेऽम्बुजस्य विस्तारः द्वे योजने करिएकाविस्तारः द्वौ क्रोशो पत्रायामस्त्रयः क्रोशाः ! पुण्डरीके पद्मस्य विष्कम्भः योजनेक स्यात् । करिण काविष्कम्भः एककोशः पत्रायामः सार्धक्रोशः । विशेषार्थः-३लोक नं. ८१ से ८४ तक का विशेषाधं और उपर्युक्त गद्यभाग का सर्व अर्थ निम्नाङ्कित तालिका में मभित है। [ तालिका अगले पृष्ठ पर देखिये ]
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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