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________________ चतुर्थाधिकार [ १०१ योजनाष्टसमुत्तुनाश्चतुर्योजन विस्तृताः । गृहेषु तोरणद्वारा राजन्ते मरिणतेजसा ।।६१।। अर्थः--उन भवनों में मरिणयों की दीप्ति से शोभायमान पाठ योजन ऊँचे और चार योजन विस्तार वाले तोरणद्वार हैं ॥६१।। कूटस्थ भवनों में निवास करने वालों का दिग्दर्शन कराते हैं : शैलेषु यानि फूटानि नदीनामयुतान्यपि देव्यो गङ्गाश्यस्तेषां वसन्ति मरिणसम्मसु ॥६२॥ शेषकूटेषु रम्येषु यानि नामानि धामसु । सर्नामभिर्युताः पुण्याद वसन्ति व्यन्तरामराः ॥६३॥ अर्थः-६ कुलाचलों पर जैसे ये ५६ कूट हैं वैसे नदियों (की वेदियों) पर भी कूट हैं । इन कूटों में से [ स्त्री लिग (इला, गंगा, रोहितास्या सुरा प्रादि ) नामधारी ] कुछ कूटों पर स्थित मरिणमय गृहों में व्यन्तर देवाङ्गनाएँ निवास करतो हैं । अवशेष कूटस्थ रमणीक भवनों में पूर्व पुण्य वशात् अपने अपने कूटनामधारी व्यन्तरदेव निवास करते हैं ॥६२-६३।। कुलाचलों के पार्श्वभागों में वनखण्डों की स्थिति एवं प्रमाण : अनपायामसमायाम क्रोशायसुविस्तते । भवतोदू बने रम्ये शैलानामुमयोविंशोः ॥६४॥ अर्थः-कुलाचलों के दोनों पाश्र्वभागों में पर्वतों की लम्बाई बराबर लम्बे और दो कोस घोड़े मस्वन्त रमणीक दो दो बन है ॥६४॥ वन वेदियों की स्थिति एवं उनके प्रमाण प्रादि का कयन करते हैं : वनपर्यन्त भागेषु सर्वतो वनवेदिका । हेमरत्नमया रम्याकृत्रिमास्ति मनोहरा ॥६५॥ क्रोशद्वयसमुत्सेधा कोशस्य पादविस्तृता । चतुर्दिक्षु महादीप्ता द्वारतोरणभूषिता ॥६६॥ अर्थः--बनको सब ओर से वेष्टित किये हुये, स्वर्ण एवं रत्नमय, अत्यन्त रमणीक, मनको हरसा करने वाली और अकृत्रिम वेदियाँ हैं । जो दो कोस ऊँची, पाव कोस चौड़ी और चारों दिशामों में महादैदीप्यमान तोरण द्वारों से विभूषित हैं ॥६५-६६।।
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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