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सिद्धान्तसार दीपक
३ हरि (वर्ष) कूट, ४ ( पूर्व ) विदेह कूट, ५ ह्री (हरि) कूट, ६ धृति कूट, ७ सीतोदा, ८ (पर) विदेह कूट, और ६ भुजग नामक कूट है। ये ही कूट क्रमशः निषध कुलाचल के ऊपर हैं ।। ४५-५०॥
१ सिद्धकूट, २ नील कूट, ३ (पूर्व) विदेह ४ सीता कूट, विदेह = रम्यक और आदर्शक नाम के ये
स्थित हैं ।। ५१-५२ ।
कीर्ति कूट, ६ नरकान्ता, ७ (प्रपर) कूट नील कुलाचल के अग्रभाग पर
१ सिद्ध कूट, २ रुक्मी ३ रम्यक, ४ नारी कूट, ५ बुद्धि कूट, ६ रूप्यकूला, ७ हैरण्यवत और ८ माणिभद्र नाम के ये कूट रुक्मी कुलाचल पर स्थित हैं ।। ५३-५४ ॥
१ सिद्ध कूट, २ शिखरी, ३ हैरण्यवत ४ सुरदेव, ५ रक्ता, ६ लक्ष्मी कूट, ७ सुवर्ण, रक्तवती, ६ गन्धवती, १० ऐरावत और ११ मणिकाञ्चन नाम के ११ रमणीक कूट क्रमशः शिखरिन् पर्वत के ऊपर स्थित हैं ।। ५५-५७
सम्पूर्ण सिद्धायतन कूटों के ऊपर खगेन्द्र और देवसमूह से अर्चनीय श्री जिनमन्दिर विद्यमान हैं, जो रत्न किरणों से सुशोभित होते हैं ॥ ५८ ॥
नोट:
:- इन उपयुक्त ५६ कूटों का पारस्परिक अन्तर, प्रत्येक कूट के उत्सेध एवं विस्तार आदि का वर्णन आगे ७३ आदि श्लोकों में किया जायगा ।
अब कूटों के ऊपर स्थित जिनालय आदि का विस्तारादि कहते हैं :---
योजनानां च साद्विकोशपञ्चदशप्रमैः । समानायामविस्तारा रत्नस्वरमया गृहाः ||५ तुङ्गाः क्रोशाधिकैक त्रिंशद्योजन मनोहराः । कूदानां शिखरेषु स्युः क्रोशागाधाः स्फुरद्र चः ||६० ॥
अर्थः- कुलाचलस्य कूटों के शिखरों पर पन्द्रह योजन अढ़ाई कोस लम्बे, १५ योजन २३ कोस चौड़े इकतीस (३१) योजन एक कोस ऊंचे और एक कोस गाध (नींव) से युक्त, फैल रहीं हैं किरणें जिनमें से ऐसे रत्न और स्वर्ण मय मनोहर गृह (भवन) बने हैं ||५६ - ६० ।।
विशेषार्थ : - - टिप्पणकार ने यहाँ एक विशेष दात दर्शाई है कि कूटोंके ऊपर स्थित ये जिनालय एवं देवप्रासाद यद्यपि प्रकृत्रिम हैं तथापि इनका माप मानव योजन ( लघु योजन, धौर क्रोश श्रादि से ही किया गया है, ऐसा जानना चाहिये । अन्य मोर जो शाश्वत वस्तुएं हैं उनका माप अलौकिक प्रमाण से है ।
ve भवनस्थ तोरणद्वारों का विस्तार प्रादि कहते हैं :
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