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________________ चतुर्थाधिकार [ ६५ सम्पूर्ण क्षेत्र एवं कुलाचलों को जीवा, चूलिका, धनुष और पार्श्वभुजा का वर्णन: भरतक्षेत्र, ऐरावत क्षेत्र के दो विजया? को अभ्यन्तर जीवा का प्रमाण ९७४८५१ योजन (१२ काला से कुछ अधिक) है । बाह्य जीवा अर्थात् विजयाचं को बाहर जीवा का प्रमाण १७७२० योजन (१२ कला में कुछ कम) है । इसो विजयाध को लिका ४८६ योजन है । इसो का लघुधनुपृष्ठ ६७६६४० योजन है। विजयाध का वृहद् धनुःपृष्ठ १०७४३२५ योजन और पाश्वभुजा ४८८१६३ योजन है। हिमवन् पर्वत की दक्षिण दिशा वाली लघुजीया अर्थात् भरत को उत्तर जीवा का प्रमाण १४४७१५ योजन है । इसो हिमवन् के उत्तर भाग में वृहद जीवा अर्थात् हैमवत क्षेत्र की दक्षिरण जीवा का प्रमाण २४६३२ योजन है। हिमवन् पर्वत की चूलिका ५२३० योजन प्रमाण है । इसी पर्वत का लघुप्रनु पृष्ठ अर्थात् भारत का उत्तर धनुपृष्ठ १४५२८१४ योजन और ज्येष्ठ धनुःपृष्ठ या हमजत क्षेत्र का लघुपनुः १९५२३०१६ योजन है। हिमवन् पर्वत की पात्रं भुमा ५३५० १५३ योजन प्रमाण है। हिमवन् पर्वत के दक्षिण भागमें जो जीवा और धनुपृष्ट का प्रमाण कहा है वही प्रमाण भरत क्षेत्र के उत्तर का जानना चाहिये । जिस प्रकार भरत क्षेत्र और हिमवाम् पर्वत को जीवा, धनुपृष्ठ, चूलिका और पार्श्वभुजा के प्रमाण का व्याख्यान किया है, उसी प्रकार जम्बूद्वीप के उत्तर भाग में ऐरावत क्षेत्र और शिस्त्ररिन् पर्वत का जानना चाहिये। महाहिमवन पर्बत से कनिष्ट (छोटे) पाश्र्वभाग का पूर्व पश्चिम मायाम अर्थात हैमवत क्षेत्र की उत्तरी जीवा का प्रमाण ३७६९४५ योजन है, और ज्येष्ठ (बड़े) पाव भाग का आयाम अर्थात् महाहिमवन् पर्वत की ज्येष्ठ जीवा अर्थात् हरिक्षेत्र की दक्षिरण जीवा का प्रमाण ५३६३१६ योजन है। इसकी चूलिका का प्रमाण ८१२८४३ योजन है । महाहिमवन के लघुधनु:पृष्ठ अर्थात् हेमवतक्षेत्र के ज्येष्ठ धनुष का प्रमाण ३८७४०३९ योजन, इसके वृहद् धनुपृष्ठ अर्थात् महाहिमवन् पर्वत के वृहद धनुष का अर्थात् हरिक्षेत्र के लघु धनुपृष्ठ का प्रमाण ५७२६३२९ योजन और इसी पर्वत की पार्श्व भुजा का प्रमाण ६२७६. योजन है । महाहिमवन् पर्वत की लघु जीवा और लघुधनुः पृष्ठ का जो प्रमाण कहा गया है वही प्रमाण हैमवत क्षेत्र की उत्तरी जीवा एवं धनुष का जानना चाहिये । [ हेमवत क्षेत्र की चूलिका ६३७१६ योजन तथा पाश्व भुजा का प्रमाण ६७५५ योजन है ]
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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